life is celebration

life is celebration

7.10.14

मुसलिम अटीट्यूड – परसेप्शन एंड रिएलिटी---- भाग-२

मुसलिम अटीट्यूड – परसेप्शन एंड रिएलिटी---- भाग-२ 
-----------------
संजय मिश्र
----------- 

इंडिया में भूख से मरने की खबर अक्सर आती रहती है.. पत्रकार इसे जतन से आपके पास पहुंचाते हैं... इस कोशिश में वे अफसरों की नाराजगी मोल लेते हैं... उनसे पूछिए या फिर अखबारों के पन्ने पलटिए... आप पाएंगे कि मरने वालों में मुसलमान नहीं के बराबर होते... कह सकते कि मुसलमान कर्मठ होते साथ ही हूनर वाले पेशे अपनाने के कारण भुखमरी टाल जाते... दिलचस्प है कि इसी देश के हुक्मरान कहते फिरते हैं कि मुसलमानों की माली हालत दलितों से भी खराब है।

वे सच्चर कमिटी की रिपोर्ट का हवाला देते हैं ... तो क्या ये रिपोर्ट डाक्टर्ड है? राजनीति करने में सहूलियत का इसमें ध्यान रखा गया है? रोचक है कि इस रिपोर्ट की महिमा का बखान कांग्रेस ब्रांड सेक्यूलरिस्ट सिद्दत से करते... सार्वजनिक मंचों पर इसको लेकर आंसू बहाए जाते... केन्द्र की सत्ताधारी दल बीजेपी को भी ये रिपोर्ट खूब सुहाती है... कांग्रेस की दशकों की उपलब्धि को भोथरा साबित करने में उन्हें ये हथियार नजर आता।  

इस डिस्कोर्स में शामिल होने वाले मुसलमान करीने से हुक्मरानों से हिसाब मांगते हैं... इस अल्पसंख्यक समाज की हैसियत बढ़ाने वाले कदम उठाने की चुनौती देते...मुसलमानों की बदहाली के कई कारण होंगे... पर आप ध्यान देंगे तो विशेष राजकीय सहयोग पाने की उनकी अर्जुन दृष्टि आपको नजर आ जाएगी.. मौजूदा समय में संघ परिवार के नेताओं के गैर-जरूरी बोल के बीच भी मुसलमानों की नजर बीजेपी के उस विजन डाक्यूमेंट पर टिकी है जो मुसलमानों के हितों के लिए तैयार हुए हैं।

संभव है पूर्व आम आदमी पार्टी नेत्री शाजिया इल्मी का बयान याद आया होगा आपको... साल २०१४ के लोकसभा चुनाव के समय दिए गए उस बयान को विवादित करार दिया गया... शाजिया ने गुहार लगाई थी कि मुसलमान बहुत सेक्यूलर हो लिए... अब उन्हें अपने हितों की ओर देखना चाहिए... इसमें अनकही बात ये थी कि मुसलमान आम आदमी पार्टी पर भरोसा दिखाएं तो उनके हितों का विशेष खयाल रखा जाएगा।

इंडिया के राजनीतिक सफर में डुबकी लगाएं तो इस तरह के फिकर की बानगी आपको बिहार में जगन्नाथ मिश्र के राजकाज के दौरान दिखेगी...सहरसा के रहने वाले पंडित सीएम मुहम्मद जगन्नाथ तक कहलाए... मुसलमानों के आर्थिक और सांस्कृतिक उम्मीदों पर वे खासे मेहरबान हुए। पर साल २००० का विधानसभा चुनाव... झंझारपुर क्षेत्र से जगन्नाथ मिश्र के बेटे नीतीश मिश्र उम्मीदवार थे... पिता ने मुसलमानों से बेटे को जिताने की गुहार लगाई पर नाकामी हाथ लगी.. नीतीश मिश्र हार गए.. ये लालू का दौर था।

मुसलमानों को लालू से खूब स्नेह मिल रहा था... पटना से लेकर ब्लाक तक में मुसलमानों की अपेक्षाओं का खयाल रखा जा रहा था... यूपी में मुलायम को मुल्ला मुलायम ऐसे ही नहीं कहा गया... उन पर मुसलमानों की सदिच्छा और मुसलमानों पर सपा का प्रेम जगजाहिर है... मायावती तक की विशेष कृपा बनी रही है मुसलमानों पर।

यानि नेहरू के समय से आर्थिक और इमोशनल सहयोग का जो सिलसिला चला वो किसी न किसी रूप में जारी है... यानि जहां सहूलियत उधर झुकाव... गैर-बीजेपी खेमों की बेचैनी मुसलमानों की उसी तरल सोच की उपज तो नहीं? क्या ये विकलता स्मार्ट वोटर कौम को अपने पाले में बनाए रखने की है? आखिर संकट किस बात का है? ये मुसलमान का संकट है... या कांग्रेस ब्रांड सेक्यूलरिज्म का... सनातनियों का या फिर ६५ साला इंडिया का संकट है?


जारी है........... 

कोई टिप्पणी नहीं:

Website Protected By Copy Space Do Not copy

Protected by Copyscape Online Copyright Infringement Tool