life is celebration

life is celebration

18.11.12

आस्था के आसरे बाज़ार को चुनौती देने की कोशिश

आस्था के आसरे बाज़ार को चुनौती देने की कोशिश
------------------------
संजय मिश्र
---------------
जै ज़माना मे दुनिया बनले ... कहै छै जे परकृति माए अपन देह के बांटि लेलखिन ... छठम अंश जे भेलै से छठी माए भेलखिन .....बूढ़ पुरनिया इहो कहै छै जे ओ ब्रह्मा के मानस पुत्री छलखिन ... जे से ... हिनकर पूजा केला स बच्चा सबहक रक्षा होई छै .... कतेक खिस्सा कहब। इस किस्सागोई के बीच कोनिया का एक हिस्सा आकार ले चुका था। लम्बी सांस छोड़ने के बाद वृद्ध कारीगर के हाथ फिर से बांस करची पर फिसलने लगे। बीच-बीच में सड़क की ओर नजर जाती। टक -टकी इस तरफ कि पिछले साल की तुलना में इस साल कितना ऑर्डर आ रहा है। दरभंगा के भटियारी सराय के बांस के कामगार बताते हैं कि खरीदारी सामान्य चल रही है। ये जानते हुए कि सेमी-फाइबर सूप (डगरा ) और पीतल के कोनिया से इन्हें चुनौती मिल रही है ... ये बांस को कलात्मक अभिव्यक्ति देने में मग्न हैं।

शहर के बीच में स्थित इस गाँव में करीब पच्चीस लोग इस पुश्तैनी काम को अंजाम देने में लगे हैं। लक्ष्मण मल्लिक बताते हैं कि कोनिया, सूप, चंगेरा, बड़ा चंगेरा( जिसे दौड़ा भी कहते हैं ) की सामान्य बिक्री हो रही है। कोनिया 25 से 35 रूपये में जबकि दौड़ा 100 रूपये में। बांस की करची से बना पथिया 100 रूपये में बिक जाता है लेकिन इसकी डिमांड में तेजी नहीं है। कच्चा माल के रूप में बांस, रंग, और अन्य सजावटी सामान की इन्हें खरीद करनी पड़ती है। एक हरौथ बांस 250 रूपये में आता है।

बारह साल के नाती प्रहलाद को कारीगरी की बारीकी समझाते हुए लक्ष्मण कह उठते हैं कि 300 रूपये में लोग पीतल का कोनिया खरीदते हैं। ज्यादा खर्च करने वाले इसे खरीदने लगे हैं और साल-दर-साल इसका इस्तेमाल करते हैं। उधर चमक-दमक में यकीन रखने वाले प्लास्टिक ( सेमी-फाइबर ) सामान लेने लगे हैं। प्लास्टिक का सूप 125 रूपये में मिलता है। लेकिन आस्थावान लोग पारंपरिक विचारों को अहमियत देते हैं। मुस्कुराते हुए लक्ष्मण कहते हैं कि -- हमर सबहक हाथ सं बनल बांसक समान शुद्ध मानल ज़ाई छै ... बांसक समान बंश बढबैत छै। शायद इस सोच में ही इन कारीगरों की उम्मीद बची है। प्रहलाद के मुताबिक़ पढ़-लिख कर नौकरी करेंगे लेकिन पुश्तैनी धंधा सीखने में क्या हर्जा है?

10.11.12

चिंता न करें जेठमलानी इसी देश में मिथिला भी है।

चिंता न करें जेठमलानी इसी देश में मिथिला भी है।
----------------------------
संजय मिश्र
-------------------
जेठमलानी के राम संबंधी बयान को सप्ताह होने को आए पर कांग्रेस की खुशामद में रमे दिल्ली के पत्रकार खासकर टीवी पत्रकार पूरे रौ में हैं। कांग्रेसी आका खुश होंगे सो बीजेपी को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। इनमें वो चैनल भी लगे हैं जिनके ब्रांड बन चुके पत्रकार को उसी जेठमलानी ने बेइज्जत कर अपने घर से भगा दिया था। आज जेठमलानी उनके लिए हॉट केक हैं जो राम, हिन्दू जीवन शैली से कांग्रेस ब्रांड सेक्यूलरिज्म की खातिर अछूत सरीखा व्यवहार करती रही है। पत्रकारिता का तनिक भी ख़याल होता तो ये चैनल मिथिला में स्थित अपने किसी रिपोर्टर से लाइव करवा रहे होते। जेठमलानी अपने विचार पर मुग्ध हैं। न जाने उन्हें राम के संबंध में मिथिला की सोच का कितना अहसास है।

मिथिला में राम का ससुराल है। ये इलाका धर्म और आध्यात्म का बड़ा केंद्र रहने का आदर हासिल रखता है। कुछ दिलचस्प पहलू यहाँ रखे जा रहे हैं। राम के भगवान्, मर्यादा वाले चरित्र और जमाई --इन तीनों रूपों का अनूठा संगम मिथिला में दीखता है। आस्थावान लोग भगवान् या नारायण का रूप उनमें देख धन्य होते। वहीं जनमानस लोक हितवादी मर्यादा के लिए उन्हें उसी श्रधा से याद करते हैं। जमाई के रूप में भी वे स्तुत्य ही हैं। पर सीता माता को मिले कष्ट से द्रवित स्वर जब लोगों के मुख से निकलते तो लगता आसमान फटने वाली कहावत चरितार्थ हो जाती। तभी तो यहाँ विवाह पंचमी के दिन लोग अपनी बेटियों के ब्याह से कतराते हैं। इसी दिन सीता का विवाह हुआ था।

मिथिला की  धरती पर कई साहित्यकारों ने राम कथा लिखी पर उनमें सीता की महानता को ज्यादा उकेरा गया। ये भी गौर करने वाली बात है कि कष्ट हरने के लिए विद्यापति नें कृष्ण और भोलेनाथ को अपनी पदावली में अधिक जगह दी। मिथिला में संभवतः राम के कारण ही जमाई को भगवान् की तरह आदर देने की परंपरा है। पर ये भी सच है कि भगवान् के रूप में राम के मंदिर मुश्किल से मिल जाएं। सीता के प्रति ममता के साथ ही राम के तीनों रूपों के साथ मिथिला सामंजस्य बिठाने की कोशिश करती रही है। जेठमलानी जी सीता के दुखों को महसूस करने के लिए मिथिला की तरफ से आपको धन्यवाद।

5.11.12

रियल रिजनल क्षत्रप बन गए नीतीश

रियल रिजनल क्षत्रप बन गए नीतीश
-------------------------------------------
संजय मिश्र
---------------
04-11-12
-----------
एक दिन ने इतनी राजनीतिक हलचल कभी-कभार ही देखी होगी। जहां दिल्ली में राजनीति इठला रही थी वहीं पटने में ये छुई -मुई सी हो रही थी। सुपर-डुपर  सन्डे यानि 04-11-12 को दिल्ली से ज्यादा राजनीतिक रंग पटने ने देखे जहां देश के अगले पी एम की रेस के तीन दावेदार
जमे थे। अड़चनों से पार पाते नीतीश कुमार गांधी मैदान में अधिकार रैली में जब अपने समर्थकों को निहार
रहे थे तो उनके मुख-मंडल पर संतोष के भाव झलक रहे थे। राहत मिली थी दो महीने की उथल-पुथल भरी
जद्दोजहद से। सकून ये कि दिल्ली की गद्दी की महत्वाकांक्षा के लिए जिस हैलीपैड की जरूरत है वो चाहत
साकार हुई। परसेप्सन वाले रिजनल क्षत्रप होने के दिन अब लद गए हैं। नीतीश कुमार का रियल रिजनल
क्षत्रप के रूप में अवतरण हो गया है।

दिल्ली के रामलीला मैदान में कांग्रेस ने भी इसी दिन अपनी ताकत दिखाई। 16 अगस्त 2011 को इसी रामलीला मैदान में अन्ना के चाहने वाले जन सैलाब ने जो चुनौती राजनीतिक जमात के लिए पेश
की थी उससे उबड़ना कांग्रेस के लिए जरूरी था। ये पार्टी अपनी लाज बचाने में कामयाब रही। उत्साह में
अगले आमचुनाव का शंखनाद हो चला। नीतीश के लिए यहाँ भी राहत के क्षण आए। रामलीला के मुकाबले
गांधी मैदान में जुटान अधिक रही। यानि मोल-भाव के लिहाज से मुफीद अवसर के संकेत। नीतीश ने
हुंकार भरते हुए मार्च में दिल्ली कूच करने का ऐलान कर दिया। साथ ही जब उन्होंने पिछड़े राज्यों को विशेष
राज्य के दर्जे की मांग के लिए गोलबंद करने की घोषणा की तो राजनीतिक निहितार्थ स्पष्ट झाँकने लगे।
जाहिर है इस राजनीतिक ध्रुवीकरण की जद में ममता बनर्जी, नवीन पटनायक और शिबू सोरेन जैसों को
साधा जा सकता है।

शतरंज की बिसात बिछ चुकी है। नीतीश की रणनीति है कि मौजूदा राजनीतिक गठबंधनो के अलावा
संभावित तीसरे मोर्चे में स्वीकार्यता का विकल्प कायम हो। लेकिन इसके लिए मॉस लीडर होने का तमगा
जरूरी था। अधिकार रैली की सफलता ने ये तमगा दे दिया है। बिहार को समझने वाले जानते हैं कि नीतीश
की राजनीतिक यात्रा सवर्णों के दृढ़ लालू विरोध और बीजेपी के मजबूत संगठन के आसरे टिका रहा है।
जे डी यू संगठन के मामले में बेहद कमजोर था। लेकिन विशेष राज्य की मुहिम के बहाने पूरा जोर संगठन
को मजबूत करने पर लगा रहा। कड़ी मेहनत रंग लाई। गांधी मैदान में जब नीतीश समर्थको को संबोधित
कर रहे थे तो यही कठिन परीक्षा पास कर लेने का सकून था।

राजनीतिक बिम्ब के लिहाज से देखें तो पिछड़े राज्यों के विकास का मुद्दा अब सतह पर आ चुका है। हर
हिन्दुस्तानी को तरक्की करने का हक़ जैसे नारे आने वाले समय में गूंजेंगे। सोच-समझ कर ही उसी तारीख
और उसी गांधी मैदान में अधिकार रैली रखी गई जहाँ से जे पी ने इंदिरा को चुनौती दी थी। दिलचस्प है कि
इसी दिन पी एम पद के दावेदार नरेन्द्र मोदी दिवंगत कैलाश पति मिश्र को श्रधांजलि देने पटना पहुंचे।
बीजेपी कार्यकर्ताओं ने ग़मगीन माहौल में भी -देश का पी एम कैसा हो नरेन्द्र मोदी जैसा हो - जैसे नारे
लगा कर राजनीतिक कशमकश को गरमा दिया। कुछ ही देर बाद आडवाणी ने पटने में ही नीतीश की
तारीफ़ कर चौंका दिया। जाहिर है आडवाणी के पी एम पद की होड़ में होने का जे डी यू समर्थन करता है
... मोदी को किनारे करने के लिए। नीतीश ने भी दिवंगत बीजेपी नेता को मंच से ही श्रधांजलि देकर ये
जता दिया कि सारे ऑप्सन खुले हैं। लालू का छटपटाना स्वाभाविक है। नीतीश से भी अधिक भीड़ जुटा कर कभी इतिहास रचने वाले लालू अब कांग्रेस खेमे में कमजोर पड़ते जाएंगे। उधर, विशेष राज्य के अभियान से आस लगाने वाली जनता को अब तक अहसास हो चुका होगा कि
ये मुद्दा पृष्ठभूमि में जा चुकी है और इसकी डगर कठिन है।  

Website Protected By Copy Space Do Not copy

Protected by Copyscape Online Copyright Infringement Tool