life is celebration

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14.2.12

कोसी पुल --कहीं खुशी कहीं गम

संजय मिश्र
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कोसी नदी पर बने पुल के उदघाटन से मिथिला के लोगों में खुशी की लहर दौर गई है । इसे एतिहासिक पल बताया गया । पुल का उदघाटन करते हुए आह्लादित नीतीश कुमार ने इस क्षण को उत्सव के रूप में लेने की अपील की। कहा जा रहा है कि इससे इलाके की तस्वीर बदलेगी।
साल १९३४ के भूकंप के कारण कोसी रेल पुल ध्वस्त हो गया था। बाद के सालों की बाढ़ इसके अवशेषों को बहा ले गई। नतीजतन इलाके के बड़े हिस्से में सीधी आवाजाही अवरूध हो गई। दूरियां बढ़ी..... और ऐसे बढ़ी कि दैनिक जीवन से लेकर आर्थिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के रूप भयावह शक्ल लेने लगे। मधुबनी-दरभंगा और सुपौल-सहरसा जिलों के गाँव के बीच शादी-ब्याह में रूकावटें आने लगी। औसतन १५ किलोमीटर के फासले पर स्थित ये गाँव आपस में कट चुके थे। नाव से पार करना जोखिम से कम नहीं....ऊपर से कोसी बांधों के बीच भौगोलिक बनावट ऐसी हो गई जो जल-दस्युओं और तस्करों का शरण-स्थली साबित हुई। ऐसे गिरोहों की दहशत नेपाल की सीमा से कुरसेला तट तक फ़ैली हुई है। लिहाजा डकैतों के खौफ के कारण लोग १५ किलोमीटर की दूरी तय करने की जगह अतिरिक्त २५० किलोमीटर सफ़र कर अपने पड़ोसी गाँव जाना ज्यादा मुफीद समझते रहे।
आवागमन ठप होने का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा। निर्मली और घोघरडीहा के बीच कभी चावल मीलों की भरमार हुआ करती थी। लिहाजा ये इलाका चावल की मंडी के तौर पर विकसित हुआ। उन्नत व्यापार की वजह थी रेल यातायात। कोसी नदी पर रेल पुल के कारण इलाके का संपर्क पूर्वी और पश्चिमी भागों से था। आपको ताज्जुब होगा कि घोघरडीहा जैसे गाँव में आई टी आई और टीचर ट्रेनिंग संस्थान अरसे से मौजूद हैं। हाल के वर्षों में जिन्होंने इन कस्बाई जगहों के पतन को को देखा हो उन्हें ये बातें कहानी जैसी ही लगेंगी।
बेशक इस इलाके में खुशी का आलम है....उम्मीद जगी है। उम्मीद कोसी के पूर्वी इलाकों में भी जगी है। वहाँ बड़े पैमाने पर नकदी फसल उपजाई जाती है। कोसी सड़क पुल के के कारण अब उनका माल आसानी से पश्चिमी इलाको में पहुंचेगा साथ ही उत्पाद का अच्छा दाम भी मिलेगा। इसे एक उदहारण से समझा जा सकता है। केले का उत्पादन वहाँ बड़ी मात्रा में होता है लेकिन दरभंगा और मुजफ्फरपुर जैसे शहरों में पहुँचते-पहुँचते ये उत्पाद खराब होने लगता है। हर सीजन में एक समय ऐसा आता है जब ये दो-तीन रूपये दर्जन खपाना पर जाता है। अब नए कोसी पुल से ये आसानी से पहुंचेगा और उत्पाद की विक्री के लिए अच्छा - खासा समय मिल जाएगा।

इस पुल के कारण इस्ट-वेस्ट कोरिडोर भारतीय अर्थव्यवस्था को साउथ-इस्ट एशिया की अर्थव्यवस्था से जोड़ेगा। इंडिया-मियान्मार फ्रेंडशिप रोड इसमें लिंक का काम करेगा। भारत की लुक-इस्ट पालिसी को देखते हुए संभावनाएं जगती हैं। ऐसे में मिथिला की अर्थव्यवस्था को जो गति मिलेगी उसका आभास किया जा सकता है। जाहिर तौर पर आतंरिक और वाह्य आर्थिक गतिविधियाँ बढेंगी। अब किशनगंज की चाय ज्यादा आसानी से दिल्ली जैसे बाजारों में पहुंचेगी। समस्तीपुर और कटिहार के बीच जूट का व्यापार तेज होगा। पूर्णिया कमिश्नरी के जूट उत्पादक किसान अब बंगाल और बांग्लादेश के साथ-साथ समस्तीपुर के जूट मीलों को भी अपना उत्पाद बेच सकेंगे।
कोसी और महानंदा नदी के बीच के इलाके में हाल के वर्षों में हर्बल उत्पाद की खेती पर ज्यादा जोर दिया गया है। कोसी का नया पुल इन उत्पादों के लिए पश्चिम का बाजार आसानी से खोल सकता है। ये बताना दिलचस्प है कि गायत्री मंत्र के रचयिता महर्षि विश्वामित्र ने हिमालय और गंगा के बीच इसी कोसी इलाके में बोटानिकल रिसर्च किया था। निश्चय ही मिथिला में हर्बल खेती की तरफ बढ़ रहा रूझान देवर्षि के प्रयासों की याद दिलाता है।

महिषी शक्तिपीठ है । दरभंगा और तिरहुत प्रमंडल के श्रद्धालू बड़ी संख्या में वहां जाना चाहते हैं। अब उन्हें काफी सहूलियत होगी। इसी तरह इन दोनों कमिश्नरी के लोगों का दार्जीलिंग जाना महज कुछ घंटों की बात होगी। कोसी के पूरब के लोगों को भी उच्चैठ और कुशेश्वर आने में आसानी होगी।
कहीं खुशी-कहीं गम....जी हाँ....पुल की तकनीकी खामी ने अच्छी खासी आबादी को निराश किया है। कोसी के पूर्वी और पश्चिमी बाधों के बीच के 11 किलोमीटर में ये पुल एक फ्लाई -ओवर की शक्ल में नहीं है। दरअसल 1.8 किलोमीटर के पुल के आलावा 9 किलोमीटर सड़क बनाई गई हैं। इन सड़कों की वजह से पुल के उत्तर में कई किलोमीटर दूर तक पानी का सतह पहले की तुलना में उंचा बना रहता है। नतीजतन इस दायरे में बांधों के बीच के तमाम गाँव जल-जमाव का शिकार हो जा रहे हैं । पुल का डिजाइन बनाते समय माना गया कि इससे पुल के उत्तर आठ किलोमीटर तक पानी का फुलाव होगा और करीब दस हजार लोग प्रभावित होंगे। लेकिन पिछले साल की बाढ़ का अनुभव बताता है कि पानी का फुलाव कई किलोमीटर आगे तक चला गया । माना जा रहा है कि करीब पचास हजार लोगों पर इसका असर रहेगा। पुल के मौजूदा डिजाइन ने लागत जरूर कम की लेकिन इसने हजारों लोगों को रोने के लिए विवश किया है। क्या इनका दर्द सुनने के लिए हुक्मरानों को फुर्सत है?
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