मराठियों को भी समझने की जरूरत है
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संजय मिश्र
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कई टीवी चैनलों में एक के बाद एक राज ठाकरे के साक्षात्कार विस्मयकारी थे ... इसके पीछे की राजनीति और मंसूबों पर किसी तरह की टिप्पणी इस पोस्ट का लक्ष्य नहीं... इससे पहले तक मीडिया में राज की एकरंग छवि छाई रही है... उम्मीद है राज के जो विचार सामने आए उससे एकरंग छवि बदले...
क्या ये सच नहीं है कि अन्य राज्यों में बिहार से पलायन कर जाने वाले लोगों के साथ हुई नाइंसाफी पर मीडिया और बिहार के राजनेता कमोवेश चुप्पी साध लेते... महाराष्ट्र या बम्बई का नाम आते ही बिहार-यूपी के तमाम नेता और दिल्ली के हिन्दी पत्रकार मोर्चा संभाल लेते?
क्या ये सच नहीं है कि बिहार या यूपी के हुक्मरानों की नाकामी के कारण पलायन की भीषण रफ्तार बनी हुई है?
क्या ये सच नहीं है कि पलायनकर्ता इंडिया के संविधान की रक्षा करने महाराष्ट्र नहीं जाते बल्कि मजबूर होकर रोजी-रोटी की तलाश में वहां या कहीं पर भी जाते?
इंडिया के लोग बिहार की भावनाओं को जितना समझें उतना ही महाराष्ट्र को जानना भी उनका फर्ज है... मराठियों को राज के बगैर भी समझा जा सकता....
आपने गौर किया होगा कि बिहार सहित देश के तमाम राज्यों के लोग दूसरे राज्यों में काम की तलाश कर पेट की आग बुझा लेते.... लेकिन आपने ये भी गौर किया होगा कि महाराष्ट्र और मराठी संस्कृति के असर वाले सीमावर्ती राज्यों जैसे एमपी आदि के किसान विपत्ति आते ही आत्महत्या कर लेते... विदर्भ(महाराष्ट्र) में तो लाखो किसानों ने अपनी इहलीला समाप्त कर ली है.... वे दूसरे राज्यों में जाकर अपना पेट पाल सकते थे.. पर मराठियों की मानसिकता थोड़ी अलग है... बड़ी नौकरियों में मराठी आपको देश के किसी कोने में मिल जाएं लेकिन आम तौर पर वहां के लोग कष्ट काटकर भी अपने सांस्कृतिक क्षेत्र में ही जीवन जीना पसंद करते... यही कारण है कि उनके लिए अपने ही राज्य में रोजगार मिलने की आकांक्षा पालना बड़ा मुद्दा है..... इस सोच को ही राज ठाकरे जैसे लोग आवाज देते हैं ... बिहार जैसे राज्य के लोग कह सकते कि हे मराठी लोगों जान गंवाने से अच्छा है अपने ही देश के अन्य हिस्सों में रोजगार खोजने में संकोच न करें... पर क्या आपने कभी प्रभावकारी राजनीतिक दलों के नेताओं को अपने ही देश के मराठियों को महाराष्ट्र में ही रहने के मोह को विशेष परिस्थिति में त्यागने के लिए मलहम लगाते सुना है? लालू, नीतीश, मुलायम, शरद .. या फिर कांग्रेस, बीजेपी के लाट साहबों के मुंह से?..
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संजय मिश्र
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कई टीवी चैनलों में एक के बाद एक राज ठाकरे के साक्षात्कार विस्मयकारी थे ... इसके पीछे की राजनीति और मंसूबों पर किसी तरह की टिप्पणी इस पोस्ट का लक्ष्य नहीं... इससे पहले तक मीडिया में राज की एकरंग छवि छाई रही है... उम्मीद है राज के जो विचार सामने आए उससे एकरंग छवि बदले...
क्या ये सच नहीं है कि अन्य राज्यों में बिहार से पलायन कर जाने वाले लोगों के साथ हुई नाइंसाफी पर मीडिया और बिहार के राजनेता कमोवेश चुप्पी साध लेते... महाराष्ट्र या बम्बई का नाम आते ही बिहार-यूपी के तमाम नेता और दिल्ली के हिन्दी पत्रकार मोर्चा संभाल लेते?
क्या ये सच नहीं है कि बिहार या यूपी के हुक्मरानों की नाकामी के कारण पलायन की भीषण रफ्तार बनी हुई है?
क्या ये सच नहीं है कि पलायनकर्ता इंडिया के संविधान की रक्षा करने महाराष्ट्र नहीं जाते बल्कि मजबूर होकर रोजी-रोटी की तलाश में वहां या कहीं पर भी जाते?
इंडिया के लोग बिहार की भावनाओं को जितना समझें उतना ही महाराष्ट्र को जानना भी उनका फर्ज है... मराठियों को राज के बगैर भी समझा जा सकता....
आपने गौर किया होगा कि बिहार सहित देश के तमाम राज्यों के लोग दूसरे राज्यों में काम की तलाश कर पेट की आग बुझा लेते.... लेकिन आपने ये भी गौर किया होगा कि महाराष्ट्र और मराठी संस्कृति के असर वाले सीमावर्ती राज्यों जैसे एमपी आदि के किसान विपत्ति आते ही आत्महत्या कर लेते... विदर्भ(महाराष्ट्र) में तो लाखो किसानों ने अपनी इहलीला समाप्त कर ली है.... वे दूसरे राज्यों में जाकर अपना पेट पाल सकते थे.. पर मराठियों की मानसिकता थोड़ी अलग है... बड़ी नौकरियों में मराठी आपको देश के किसी कोने में मिल जाएं लेकिन आम तौर पर वहां के लोग कष्ट काटकर भी अपने सांस्कृतिक क्षेत्र में ही जीवन जीना पसंद करते... यही कारण है कि उनके लिए अपने ही राज्य में रोजगार मिलने की आकांक्षा पालना बड़ा मुद्दा है..... इस सोच को ही राज ठाकरे जैसे लोग आवाज देते हैं ... बिहार जैसे राज्य के लोग कह सकते कि हे मराठी लोगों जान गंवाने से अच्छा है अपने ही देश के अन्य हिस्सों में रोजगार खोजने में संकोच न करें... पर क्या आपने कभी प्रभावकारी राजनीतिक दलों के नेताओं को अपने ही देश के मराठियों को महाराष्ट्र में ही रहने के मोह को विशेष परिस्थिति में त्यागने के लिए मलहम लगाते सुना है? लालू, नीतीश, मुलायम, शरद .. या फिर कांग्रेस, बीजेपी के लाट साहबों के मुंह से?..
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