मोदी, केजरीवाल और
मीडिया
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संजय मिश्र
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दिल्ली में राजनीतिक
शतरंज की गोटियां बिठाने की चाल हद से ज्यादा चली जा रही है...राजनीतिक खिलाड़ी
पर्दे के पीछे हैं और वहां का मीडिया खुद मोहरा बन इसकी अगुवाई कर रहा है...
इंडिया में जो वर्ग केजरीवाल के उभार से व्यवस्था परिवर्तन की उम्मीदें पाले बैठा
है वे सुखद अनुभूति से भर उठे होंगे कि अब नरेन्द्र मोदी के बरक्स केजरीवाल को
राजनीतिक क्षितिज पर पेश किया जा रहा है... नगर निगम से थोड़ी ही ज्यादा पावर वाले
दिल्ली के विधानसभा के सत्ताधीशों से देश में राजनीतिक क्रांति का ज्वार पैदा करने
वाले मीडिया में केजरीवाल वर्सेस राहुल गांधी जैसे जुमले का नहीं होना संदेह जगाने
के लिए काफी है। आप फेनोमेना के मुरीदों को इस पर चौंकना चाहिए।
ध्यान उस खबर की तरफ
भी जानी चाहिए कि दिल्ली सचिवालय से पत्रकार बाहर कर दिए गए... उससे भी बड़ी खबर
है कि वे आप की सरकारी टीम पर चीख कर अपनी हैसियत बघार रहे थे... वही पत्रकार जो
चिदंबरम की एक अदद एडवाइजरी पर सांसें थाम लेते थे... वही लोग जो कपिल सिब्बल के
इशारे पर रामलीला मैदान में रामदेव के समर्थकों पर देर रात हुए बर्बर लाठी चार्ज
की विजुवल अपनी बुलेटिनों से गायब कर देते रहे... उनकी वो कारस्तानी याद होगी आपको
जब कोर्ट के संज्ञान लेते ही उस लाठी चार्ज के विजुवल बुलेटिनों में छा गए थे...
और अगले दिन से ही विजुवल के गायब होने का सिलसिला फिर से शुरू...फिर सचिवालय के
बाहर का ये आक्रोश और स्टूडियो में केजरीवाल वंदना दोनों साथ-साथ चलने के क्या
मायने हैं?
मीडिया का क्या
है?... उसने अपनी गत पेंडूलम की बना रखी है... उसकी डिक्सनरी में निर्लज्जता जैसे
शब्द नहीं हैं... लिहाजा दिल्ली के सत्ता केन्द्रों की मादक आंच के आदी वहां के
पत्रकार सयाना बन रहे हैं। पर लालू प्रसाद के बयान ने उनकी पोल-पट्टी को उघार कर
रख दिया है। लालू प्रसाद की मानें तो राहुल का कोई मुकाबला नहीं है... मोदी और
केजरीवाल की राहुल के सामने कोई राजनीतिक हैसियत नहीं... ये तो बस मीडिया की उपज
हैं... यानि राहुल सर्वमान्य हैं और बाकि लोगों की बाकि लोगों से तुलना हो...
मीडिया इसी पैटर्न पर आगे बढ़ रहा है...
अब वरिष्ठ कांग्रेसी
जनार्दन द्विवेदी के बयान की तरफ मुड़ें... इसमें कहा गया कि केजरीवाल के पास
विचारधारा नहीं है... साथ ही ये भी कहा गया कि बिन विचारधारा आम आदमी पार्टी लंबी
राजनीतिक पारी नहीं खेल सकती। यानि आप पर चालाकी से हमले भी हो रहे साथ ही सहृदयता
दिखा कर केजरीवाल की मोदी से तुलना भी की जा रही है। यानि मोदी की हैसियत को कमतर
बताकर बीजेपी को श्रीहीन साबित करने की कवायद भी हो रही। यहां गौर करने वाली बात
है कि केजरीवाल की तुलना न तो नीतीश, ममता, पटनायक से हो रही है और न ही लालू,
मुलायम से..द्रविड पार्टियां तो उनके कैनवास पर ही नहीं... .
इतना ही नही... फर्ज
करिए आप लोकसभा चुनावों में ३०० सीटों पर चुनाव लड़कर इतनी सीटें हासिल करे कि वो तीसरी
शक्ति बन जाए तो मौजूदा थर्ड फ्रंट वाले कहां होंगे?... यानि वे चौथी शक्ति बनने
को मजबूर होंगे... क्या आपने थर्ड फ्रंट को केजरीवाल रूपी चुनौती की कोई मीमांसा
देखी है... .. मीडिया इन संभावनाओं पर चुप्प क्यों है? जाहिर है मीडिया उसी राह पर
चलने की होशियारी कर रहा है जिस राह पर वो अन्ना आंदोलन के समय चला...याद करें
अन्ना के आंदोलन की अत्यधिक कवरेज कर ये जताया जा रहा था कि विपक्ष है ही कहां? ये
भी समझाया जा रहा था कि विपक्ष का रोल तो मीडिया अदा कर रहा है और अन्ना वो खाली
राजनीतिक स्पेस भरने आए हैं...
मीडिया की उस समय की
चतुराई जिसे खुश करने के लिए थी उसका प्रतिफल दिल्ली चुनाव के नतीजों के रूप में
सामने आए हैं... जिसे खुश होना चाहिए उसका लगभग सफाया.... अब फिर से वही
चालाकी...उधर बीजेपी के नेता मीडिया के झांसे में आने की लगातार नादानी कर रहे
हैं...लिहाजा इस देश के आम लोग जो व्यवस्था परिवर्तन के विमर्श के फोकस में आने की
उम्मीद पाले बैठे हैं उन्हें आने वाले समय में घोर निराशा होगी...आप कितने भी
वायदे निभाए... अब चर्चा राजनीतिक शुचिता के प्रतीकों को बनाए रखने पर नहीं
होगी.... और न ही ग्राम स्वराज के आदर्शों की बारीकियों पर कहीं नजर जमाई जाएगी...
जिस कारण आप के होने का महत्व है वो दृष्य से ओझल रहेगा।