life is celebration

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30.12.13

मोदी, केजरीवाल और मीडिया

मोदी, केजरीवाल और मीडिया
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संजय मिश्र
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दिल्ली में राजनीतिक शतरंज की गोटियां बिठाने की चाल हद से ज्यादा चली जा रही है...राजनीतिक खिलाड़ी पर्दे के पीछे हैं और वहां का मीडिया खुद मोहरा बन इसकी अगुवाई कर रहा है... इंडिया में जो वर्ग केजरीवाल के उभार से व्यवस्था परिवर्तन की उम्मीदें पाले बैठा है वे सुखद अनुभूति से भर उठे होंगे कि अब नरेन्द्र मोदी के बरक्स केजरीवाल को राजनीतिक क्षितिज पर पेश किया जा रहा है... नगर निगम से थोड़ी ही ज्यादा पावर वाले दिल्ली के विधानसभा के सत्ताधीशों से देश में राजनीतिक क्रांति का ज्वार पैदा करने वाले मीडिया में केजरीवाल वर्सेस राहुल गांधी जैसे जुमले का नहीं होना संदेह जगाने के लिए काफी है। आप फेनोमेना के मुरीदों को इस पर चौंकना चाहिए।

ध्यान उस खबर की तरफ भी जानी चाहिए कि दिल्ली सचिवालय से पत्रकार बाहर कर दिए गए... उससे भी बड़ी खबर है कि वे आप की सरकारी टीम पर चीख कर अपनी हैसियत बघार रहे थे... वही पत्रकार जो चिदंबरम की एक अदद एडवाइजरी पर सांसें थाम लेते थे... वही लोग जो कपिल सिब्बल के इशारे पर रामलीला मैदान में रामदेव के समर्थकों पर देर रात हुए बर्बर लाठी चार्ज की विजुवल अपनी बुलेटिनों से गायब कर देते रहे... उनकी वो कारस्तानी याद होगी आपको जब कोर्ट के संज्ञान लेते ही उस लाठी चार्ज के विजुवल बुलेटिनों में छा गए थे... और अगले दिन से ही विजुवल के गायब होने का सिलसिला फिर से शुरू...फिर सचिवालय के बाहर का ये आक्रोश और स्टूडियो में केजरीवाल वंदना दोनों साथ-साथ चलने के क्या मायने हैं? 

मीडिया का क्या है?... उसने अपनी गत पेंडूलम की बना रखी है... उसकी डिक्सनरी में निर्लज्जता जैसे शब्द नहीं हैं... लिहाजा दिल्ली के सत्ता केन्द्रों की मादक आंच के आदी वहां के पत्रकार सयाना बन रहे हैं। पर लालू प्रसाद के बयान ने उनकी पोल-पट्टी को उघार कर रख दिया है। लालू प्रसाद की मानें तो राहुल का कोई मुकाबला नहीं है... मोदी और केजरीवाल की राहुल के सामने कोई राजनीतिक हैसियत नहीं... ये तो बस मीडिया की उपज हैं... यानि राहुल सर्वमान्य हैं और बाकि लोगों की बाकि लोगों से तुलना हो... मीडिया इसी पैटर्न पर आगे बढ़ रहा है...

अब वरिष्ठ कांग्रेसी जनार्दन द्विवेदी के बयान की तरफ मुड़ें... इसमें कहा गया कि केजरीवाल के पास विचारधारा नहीं है... साथ ही ये भी कहा गया कि बिन विचारधारा आम आदमी पार्टी लंबी राजनीतिक पारी नहीं खेल सकती। यानि आप पर चालाकी से हमले भी हो रहे साथ ही सहृदयता दिखा कर केजरीवाल की मोदी से तुलना भी की जा रही है। यानि मोदी की हैसियत को कमतर बताकर बीजेपी को श्रीहीन साबित करने की कवायद भी हो रही। यहां गौर करने वाली बात है कि केजरीवाल की तुलना न तो नीतीश, ममता, पटनायक से हो रही है और न ही लालू, मुलायम से..द्रविड पार्टियां तो उनके कैनवास पर ही नहीं... .

इतना ही नही... फर्ज करिए आप लोकसभा चुनावों में ३०० सीटों पर चुनाव लड़कर इतनी सीटें हासिल करे कि वो तीसरी शक्ति बन जाए तो मौजूदा थर्ड फ्रंट वाले कहां होंगे?... यानि वे चौथी शक्ति बनने को मजबूर होंगे... क्या आपने थर्ड फ्रंट को केजरीवाल रूपी चुनौती की कोई मीमांसा देखी है... .. मीडिया इन संभावनाओं पर चुप्प क्यों है? जाहिर है मीडिया उसी राह पर चलने की होशियारी कर रहा है जिस राह पर वो अन्ना आंदोलन के समय चला...याद करें अन्ना के आंदोलन की अत्यधिक कवरेज कर ये जताया जा रहा था कि विपक्ष है ही कहां? ये भी समझाया जा रहा था कि विपक्ष का रोल तो मीडिया अदा कर रहा है और अन्ना वो खाली राजनीतिक स्पेस भरने आए हैं...


मीडिया की उस समय की चतुराई जिसे खुश करने के लिए थी उसका प्रतिफल दिल्ली चुनाव के नतीजों के रूप में सामने आए हैं... जिसे खुश होना चाहिए उसका लगभग सफाया.... अब फिर से वही चालाकी...उधर बीजेपी के नेता मीडिया के झांसे में आने की लगातार नादानी कर रहे हैं...लिहाजा इस देश के आम लोग जो व्यवस्था परिवर्तन के विमर्श के फोकस में आने की उम्मीद पाले बैठे हैं उन्हें आने वाले समय में घोर निराशा होगी...आप कितने भी वायदे निभाए... अब चर्चा राजनीतिक शुचिता के प्रतीकों को बनाए रखने पर नहीं होगी.... और न ही ग्राम स्वराज के आदर्शों की बारीकियों पर कहीं नजर जमाई जाएगी... जिस कारण आप के होने का महत्व है वो दृष्य से ओझल रहेगा।   

24.12.13

अथ हवा कथा---पाकिस्तान से होकर आती है पछिया हवा

अथ हवा कथा---पाकिस्तान से होकर आती है पछिया हवा 
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संजय मिश्र
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नीतीश कुमार हवा से परेशान हैं... एलर्जी की हद तक... रह रह कर उलाहना...उद्योगपतियों को संबोधित करते हुए भी अपने इस दुख का इजहार कर गए वे....  प्रकृति भी सोच में पड़ गई हो कि बेचारे हवा से ऐसा कौन सा अपराध हो गया है... जब तक मामला मशीनी हवा (ब्लोअर वाली) में उलझा था तब तक वो इसे इनसानी लीला समझती होगी... पर अबकी निशाना पछवा (पछिया) हवा पर है... प्रकृति का संशय में आना स्वाभाविक... चलिए कुछ पल के लिए उन्हें छोड़ते हैं....

बात समाचार ये है कि नीतीश कुमार ने पहले इतिहास के प्रोफेसर की भूमिका ओढ़ ली थी... और अब वे भूगोल या फिर पर्यावरण विज्ञान पढ़ाने निकले हैं देश को. ...सच में गर्मी में ये पछिया हवा लू बनकर डराती है... और जब जाड़े का समय हो तो कोल्ड स्ट्रोक का खतरा मंडराता है... इतना तक तो ठीक है पर चिकित्सा विज्ञानी ये भी कहते कि पछिया हवा निरोगी है... इस बात को नीतीश छुपा ले जाते हैं ...नीतीश इस बात को भी छुपा लेते हैं कि पछिया हवा पाकिस्तान से होकर आती है.... 

अब आप सोच रहे होंगे कि पुरबा हवा की बारी कब आएगी? इत्मिनान रखिए चुनाव तक ऐसा होने वाला नहीं है... लिहाजा आपसे ये नहीं कहा जाएगा कि पुरबा हवा रोग लेकर आती है... अब आप क्लाइमेक्स सुनें.... जब पुरबा और पछवा हवा मिलती है तो बारिश होती है... खूब अनाज उपजता है... भुखमरी से निजात का मंसूबा बांधा जाता है... देश ...समाज उत्फुल्ल हो उठता है... खर्च करने का मन भी करने लगता है... ये सब देख उद्योग जगत मुस्कराता है.... 

आप सोच रहे होंगे कि ये कौन सी पहेली है... खुद निर्णय ले लीजिए आप.... बस पछिया की तरफ से मोदी समझिए और पुरबा का प्रतीक नीतीश को मान लें... चुनाव २०१४ तक नीतीश ज्ञान की मीमांसा करते रहें... खुदा-न-खास्ता त्रिशंकु की नौबत आई तो पछिया हवा से पुरबा हवा का मिलन तो न हो पर लिव इन रिलेशन की आकुलता के दर्शन होंगे... आखिर समझदार लोग कहते फिरते हैं कि राजनीति संभावना का खेल है ... हिम पर्वत पर विराजमान इंडिया के लोगों के धर्म वाले अराध्य पुरूष और प्रकृति राजनीति रूपी पछिया और पुरबा हवा की मचलती इस केलि क्रीड़ा को तब निहार रहे होंगे... बस शेष इस पोस्ट को पढ़नेवाले अनुमान लगा लें... जोड़ लें और घटा भी लें...

8.12.13

अहंकार का पराभव...

अहंकार का पराभव (त्वरित टिपण्णी) 
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संजय मिश्र 
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गैरकांग्रेसवाद (नरेन्द्र मोदी के शब्दों में कांग्रेस मुक्त भारत) एक बार फिर दस्तक दे चुका है... विभिन्न राज्यों के चुनावी नतीजे यही संकेत कर रहे हैं... कांग्रेस के हौसले पस्त हैं.... हाल के सालों में बीजेपी की जो डाउनस्लाइड देखी गई वो थमी है और इसके उपर जाने के आसार बन रहे हैं... .. कांग्रेस की घटत और बीजेपी की बढ़त उन जगहों पर हुई है जहां कांग्रेस ब्रांड सेक्यूलरिस्ट ये आरोप नहीं लगा सकते कि ये दंगों से उपजे पोलराइजेशन का कमाल है। 

एक बड़ा सबक जेडीयू को मिला है... नीतीश और उनका पूरा मंत्रीमंडल कई दिनों तक दिल्ली में कैंप किए रहा... आम आदमी पार्टी से ज्यादा खर्च और केंपेन के बावजूद जनता ने उन्हें खारिज किया है... संदेश यही कि कांग्रेस के साथ नीतीश जाएंगे तो नकारे जाएंगे... दिलचस्प है कि दिल्ली में बिहार के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं और वहां वोटर हैं...बिहारियों का ये मानस चौंकाता है... बिहार के अधिकांश लोग लालू एरा के शुरूआती चरण में ही दिल्ली चले गए थे और इनमें कांग्रेस के लिए वो तल्खी नहीं रही जो बिहार में रह रहे उनके परिजनों की रहती है... बावजूद इसके नीतीश की महत्वाकांक्षा को पर लगने का मौका नहीं दिया दिल्ली के लोगों ने... नीतीश की पराजय इस मायने में भी है कि वो मायावती की बीएसपी वाली परफारमेंस (दिल्ली के पिछले चुनाव में) तक नहीं पहुंच सके। 

महंगाई का डंक और उपर से कांग्रेसी नेताओं के जले पर नमक छिड़कने वाले बयानों का हिसाब चुकता करने वाली जनता ने केजरीवाल को सर आंखों पर बिठाया है...कांग्रेस के अहंकार को शिकस्त मिली है...  अप्रत्याशित और पॉलिटिकल क्लास को डराने वाले आंदोलनों का गवाह रही दिल्ली की जनता ने उन आंदोलनों को निर्ममता से कुचलने की कांग्रेसी निरंकुशता का जवाब भी दिया है... न जाने राजबाला की आत्मा कैसा महसूस कर रही हो.... जो पॉलिटिकल अनालिस्ट उन आंदोलनों को मीडिया का क्रिएशन बता कर खारिज कर रहे थे उन्हें भी सीमित संदर्भ में वोटरों ने जवाब दिया है। 

निश्चय ही केजरीवाल ने भारतीय राजनीति को नया नजरिया और नई ग्रामर दी है... ये आंदोलन के समय से लेकर चुनावी समर के नतीजों तक में उन्होंने दिखाया है... सभी जानते हैं कि अन्ना को केजरीवाल की मेहनत से वो शोहरत मिली जिसने उनमें गांधी का अक्स ताकने के लिए आज की युवा पीढ़ी को ललचाया...राष्ट्रीय फलक पर अन्ना सबके चहेते बने...नतीजों के बीच केजरीवाल को जो पॉलिटिकल पंडित सेहरा देने को मजबूर हुए हैं वो कल तक आम आदमी पार्टी को नकारते रहे... आज भी ये वर्ग यही साबित करने पर तुला है कि आप ने सेक्यूलर स्पेस को मजबूती दी है... बावजूद इसके कि आप राष्ट्रवादी स्पेस की शक्ति है... यही लोग आरएसएस से आप के लिंक को खोजते रहते थे... इस बात को छुपाते हुए कि आंदोलन के समय अन्ना के लोगों को माओवादियों ने भी ऑन रिकार्ड समर्थन दिए थे।

दिल्ली सिटी एस्टेट जैसा है... संभव है लोकसभा चुनावों के समय केजरीवाल ग्रामीण भारत में वैसा चमत्कार नहीं दुहरा पाएं... पर राजनीति को बदलने लायक मिजाज लोगों में विकसित जरूर कर दिया है...उनके आलोचक कहते कि मुद्दों के आधार पर लंबी पारी नहीं खेली जा सकती.... यानि विचारधारा या फिर वैचारिक आधार होना जरूरी है...आप के नेताओं पर यकीन करें तो उनका वैचारिक आधार ग्राम स्वराज की कल्पना को नए संदर्भ में परिभाषित करना है... ग्राम स्वराज शब्द पर फोकस पड़ेगा और ये कांग्रेस को डराएगा जबकि बीजेपी को सचेत रखेगा...  सोनिया नतीजों के बाद ये कहने को मजबूर थीं कि सही समय पर पीएम उम्मीदवार का एलान होगा तो राहुल ने आप से सबक सीखने की शालीनता दिखाई....आप के कारण राजनीति का तात्विक अंतर बीजेपी को दिल्ली की तरह (हर्षवर्द्धन को सीएम उम्मीदवार बनाने जैसे कदम) मजबूर करेगा कि ये - पार्टी विद अ डिफरेंस - की अपेक्षाकृत ज्यादा स्वीकार्य छवि की ओर लौटे... गडकरी ने आठ दिसंबर की शाम जब कहा कि बीजेपी विपक्ष में बैठना पसंद करेगी... तो एक अर्थ में ये आप की राजनीति के असर को स्वीकारना भी है...बरना कांग्रेस की नापसंदगी का फायदा तीसरे मोर्चे का समूह भी उठा ले जाएगा।





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