ये इंडिया का भारत
से कनेक्ट है...
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संजय मिश्र
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मोदी, मोदी....
मोदी, मोदी.... की चांटिंग..... जी हां, उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम... हर
तरफ यही गूंज... गुजरात विधानसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद नरेन्द्र मोदी की
धन्यवाद सभा से जो ये ध्वनि इंडिया के लोगों तक पहुंची तो ...फिर इसे देश के लोगों
के मानस के साथ शिंक ( sync… ) होने में देर नहीं लगा... मोदी
के पीएम उम्मीदवार बनने के बाद ये कदमताल आकार लेता गया... लेकिन कांग्रेस की
अगुवाई वाली राजनीतिक जमात इसे पढ़ने और कबूल करने को तैयार न हुई... लिहाजा ...
१६ मई २०१४ को जब नतीजे आए तो इस देश की सबसे बूढ़ी राजनीतिक पार्टी यानि कांग्रेस
लीडर आफ अपोजिशन के लायक भी न बची... नरेन्द्र मोदी के नायकत्व में बीजेपी ने अपने
बूते मेजोरिटी हासिल कर इतिहास रच दिया है...
देश चलाने की खातिर
एनडीए की ही सरकार बनेगी.. सत्ता में आने वालों के इस संदेश पर समर्थक विहुंसि रहे
हैं और वो भी संतोष कर रहे होंगे जो मोदी को रोकने के लिए हर जायज और निर्लज्ज कदम
उठाते रहे... जनता के इस फैसले के संकेत स्पष्ट हैं... क्षत्रपों खासकर हिन्दी
क्षेत्रों के जातीए नेताओं की ब्लैकमेल की राजनीति के दिन अब लदने वाले हैं... उन
लोगों को भी झटका लगा है जो विशफुल थिंकिंग के आसरे पारंपरिक राजनीति को बनाए रखना
चाहते थे... मुसलमानपरस्ती के जवाब में धर्म से भींगी राजनीति ( यहां बीजेपी
पढ़ें) और इसे कम्यूनल बताकर और उसे चेक करने के चलते जातीए राजनीति को बढ़ावा
देने की हरसंभव कोशिश... हिन्दू धर्म में यकीन रखने वालों को बांटने की इस मंशा पर
वोटरों ने खींज उतारा है..
ये नतीजे कांग्रेस
की उस कोशिश को करारा जवाब है जिसके तहत सेक्यूलरिज्म को चुनावी मुद्दा बनाने का
दांव खेला गया। देश दुखी होता रहा कि वोट पाने की खातिर शासन चलाने के मिजाज(यानि
सेक्यूलरिज्म ) को ही बलि क्यों बनाया जा रहा... लेकिन सत्ता पाने के स्वार्थ में
अंधी हो चली कांग्रेस और उनके वामपंथी, प्रगतिवादी और समाजवादी समर्थकों को ये
चिंता नजर न आई.. सोनिया ने जब शाही इमाम से अपील कर सेक्यूलर वोट बिखड़ने से
रोकने की गुहार लगाई तो संजीदा लोगों को सर पीटने के अलावा कोई चारा न बचा। संदेश
ये गया कि मुसलमान सेक्यूलर हुए और बाकि आबादी पर चुप्पी... इस बची आबादी को लगा
उसे कम्यूनल ही माना गया।
शाजिया इल्मी जी हां
आम आदमी पार्टी की नेता ने फरमाया कि मुसलमान बहुत सेक्यूलर हुए और उसके सांसारिक
हितों की रक्षा के लिए उसे कम्यूनल होना होगा... मतलब ये कि उसे मुसलमान होकर वोट
करना होगा... बेशक जीवन की जद्दोजहद से परेशान लोग बुनियादी सुविधाए चाहें तो
इसमें हर्ज नहीं... बतौर शाजिया इन बुनियादी हकों के चलते वो धार्मिक ब्लॉक की तरह
व्यवहार करे ... इस चाहत में न तो नफरत की जगह है और न ही हिंसा... जब इस मासूम सी
अभिलाषा को शाजिया कम्यूनल कह सकती हैं तो फिर इस महीन परिभाषा से इतर पीएम मनमोहन
सिंह के पाकिस्तान की शह पर काम करने वाले एक आतंकवादी के लिए रात भर सो नहीं सकने
की वेदना को किस श्रेणी के कम्यूनलिज्म का दर्जा देती इस देश की जनता...
एक अल्पसंख्यक की
पीड़ा मीडिया के लिए न्यूज सेंस के हिसाब से बड़ी खबर हो सकती है... पर शासन चलाने
वाले के लिए देश के हर व्यक्ति का दुख चिंता का कारण होता है... उसे नफरत फैला कर
या डराकर न्याय नहीं करना चाहिए...मनमोहन और दिग्विजय सिंह के कई बयान बहुसंख्यकों
को उद्वेलित और अपमानित करने वाले रहे... आरएसएस के विरोध की अंधी दौर में ये होश
न रहा कि बहुसंख्यकों को नीचा दिखाने की चूक हो रही। सैफ्रोन टेररिज्म यानि
केसरिया आतंकवाद यानि इंडिया के झंडे में उपयोग किए जाने वाले केसरिया रंग का
अपमान कर बैठे।
बीजेपी के लिए खुश
होने का समय रहा जब ये शाब्दिक हमले होते रहे...चुनाव प्रचार के दौरान इस पार्टी
के नेता को पाशविक साबित करने की होड़ मची रही... बीजेपी के लिए वोट में इजाफा
होने की सूरत बन रही थी... उसे ये भी अहसास रहा कि बीजेपी के हिन्दुत्व को निशाना
बनाने के चक्कर में हिन्दू हित और हिन्दू चेतना पर भी कांग्रेसी निशाना साध रहे
... फायदा बीजेपी को ही मिलना था... कांग्रेस भूलती रही कि आजादी के आंदोलन के
दिनों में उसकी कोख में ये हिन्दू चेतना भी समाहित रही... विभाजन के बाद वो इसे
धीरे-धारे अच्छी तरह भूल बैठी... इंदिरा के समय वाम सोच के साथ मिल कर ऐसे इंडिया
के कंसेप्ट को पल्लवित करने में सफल हुई जिसमें भारत के साथ कंटिनुइटी नहीं रहे...
उसी इरादे का इजहार कांग्रेसी करते रहते जब वे कहते हैं कि इंडिया महज ६५ साल का
नौजवान देश है... नरेन्द्र मोदी का उभार उसी भारत और इंडिया के बीच पुल बनाने की
दस्तक है।
मोदी विरोधी नादान
नहीं है ... वे इस मर्म को समझ रहे। यही कारण है कि कांग्रेस का बौद्धिक समर्थक
वर्ग बहुसंख्यक उभार के खतरे की तरफ ध्यान खींचने लगा है... उसे अहसास है कि ६५ साला
देश की विशफुल थिंकिंग दरकने वाली है... कांग्रेस के कई नेता चुनाव अभियान के दौर
में बहुसंख्यक कम्यूनलिज्म के खतरे से यूं ही आगाह नहीं कर रहे थे... ये आत्ममंथन
का भाव नहीं था बल्कि इस नाम पर अपने वैचारिक पाप को ढकने की कोशिश ज्यादा प्रबल
थी... हां कांग्रेस इस बात से खुश हो सकती है कि मेनस्ट्रीम पार्टी के शासन के
चलते रहने की जो आकांक्षा उसने भी पाली थी उसे बीजेपी ने साकार कर
दिखाया...क्षत्रपों के कमजोर होने से कांग्रेस अपने पारंपरिक जनाधार फिर से हासिल
करने की हसरत पाल सकती है।
मुसलमानों के वोट
कमोबेश कांग्रेस के पाले में आ गए हैं... आम जनता बने रहने की मानसिकता विकसित
करने के लिए कांग्रेस मुसलमानों को समय दे दे यही वक्त की मांग है...मुसलमानपरस्ती
से तौबा करने से रूटलेस इंडिया की जद्दोजहद नहीं करनी पड़ेगी... कुछ सालों तक
शानदार विपक्ष की भूमिका निभाए कांग्रेस ताकि लोकतांत्रिक फिजा में योगदान हो।
इससे उसके उस अहंकार का भी नाश होगा कि इंडिया को सिर्फ वही चला सकती है। नरेन्द्र
मोदी कुछ सालों तक देश को ढंग से चला गए तो इस देश को पुनर्जीवित कांग्रेस भी मिल
सकता है।
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