संजय मिश्र
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गृह मंत्री पी चिदंबरम ने आठ जून को लगभग धमकाने वाले अंदाज में कहा कि ....(जन-आंदोलनों के ) कम्पे-टि-टिव कवरेज से देश की लोकतांत्रिक व्यवश्था को ख़तरा है। दिल्ली के कई टीवी चैनलों ने सरकार के इस खतरनाक इरादे की अनदेखी की। इस बयान का पीसी में जूता प्रकरण के दौरान कांग्रेसी बीट वाले पत्रकारों के रवैये से गहरा नाता है। ये नौबत क्यों आई कि हाल के आंदोलनों को सबक सिखाने के बाद अब निशाना मीडिया पर आ गया है। इसकी तह में जाना जरूरी है। -----------------------------------------------------------------------पिछले लोक सभा चुनाव से लेकर झारखंड विधान सभा चुनाव तक दिल्ली के रसूख वाले अधिकाश पत्रकार कांग्रेस की गोद में लोटते नजर आए। इसी दौरान ऐसा माहौल बनाया गया मानो देश की किसी ज्वलंत समस्या को उठाने के लिए पहले आपको इन पत्रकारों से सेक्यूलर होने का सर्टिफिकेट हासिल करना होगा। ये कांग्रेस और वाम प्रतिपक्ष का दुराग्रह रहा है। लेकिन केंद्र की सत्ता को खुश करने के लिए ये पत्रकार ख़म ठोक कर मैदान में आ गए। ऐसा सन्देश दिया जाने लगा मानो सेक्यूलर होने का सर्टिफिकेट लेने में नाकाम हुए तो कम्यूनल करार दिए जाएंगे। जनता हैरान होकर सवाल कर रही है कि सेक्यूलर का --एंटो- निज्म-- कम्यूनल कब से हो गया। ----------------------------------------------------------------------------------------------------समझदार लोग जानते हैं कि सेक्यूलरिज्म की अवधारणा सत्ता और शाशन के लिए है न कि आम जानो के लिए। संविधान कि मूल स्पिरिट मानती है कि भारत के लोग --इन एसेंसिअल -- धार्मिक हैं और रहेंगे। ऐसे में जनता दिग्भ्रमित हो जाती है जब मीडिया के लोग चुनाव विश्लेषण के दौरान सेक्यूलर वोट और कम्यूनल वोट की बात करने लगते हैं। वोटरों को सेक्यूलर और कम्यूनल घोषित करने के बाद अब बारी है समस्याओं को सेक्यूलर और कम्यूनल घोषित करने की। क्या भूख सेक्यूलर या कम्यूनल हो सकता है? ---------------------------तो फिर दिल्ली के इन पत्रकारों ने अन्ना का समर्थन कैसे कर दिया ये जानते हुए कि कांग्रेस अन्ना के पीछे आर एस एस का हाथ देखती है? कांग्रेस को तो ----तहरीर स्क्वयेर फेनोमेना ---- का डर सता रहा था। पर इन पत्रकारों को किसका डर था? दरअसल ये पत्रकार अपनी ही जाल में उलझ गए हैं। अपनी दूसरी पारी में कांग्रेस ने सोची समझी रण-नीति के तहत पक्ष और विपक्ष खुद ही होने का खेल खेल रही है। इशारा ये कि विपक्ष है ही कहाँ? जूता प्रकरण भी इसी सवाल को लेकर था। -----------------------------------------------------------कांग्रेस को खुश करने के लिए ये पत्रकार भी इसी दोहरी भूमिका में आ गए। यानि खुद ही पक्ष और खुद ही विपक्ष। इसके लिए न्यूज़ की एंगल और स्टूडियो में बहष का टोन एंड टेनर बदला गया। बार बार एंकरों ने बताया कि विपक्ष है ही कहाँ? आम तौर पर जनता मीडिया की बातों पर भरोसा करती है। लिहाजा ये दलील उनके दिमाग में बैठने लगी। जनता ने जानने की जहमत नहीं उठाई कि वाम और दक्षिण विपक्ष अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहे या नहीं। जंतर-मंतर पर अन्ना को मिला ये समर्थन इसी समझ का प्रतिफल थी। -----------------------------------नतीजा ये भी सामने है कि वाम विपक्ष जहां डिफेन्स की मुद्रा में है वहीँ दक्षिण विपक्ष हताश। इस असहज स्थिति का नजारा टीवी स्टूडियो की बहसों में देखा गया....जब वाम नेता कई बार एंकरों को फटकारते नजर आए....ये कहते हुए कि ----पत्रकारों की तरह सवाल करो ना कि राजनीतिक कार्यकर्ताओं की तरह। -----------------------------------------------------------------------------------------विपक्ष दबाव में हो और मीडिया एंटी इस्तेबलिस्मेंट न हो तो सत्ता तानाशाह हो ही जाती है। ऐसा बिहार में भी है और दिल्ली में भी। दोनों जगहों पर पत्रकार सरकारी दबाव झेल रहे और डांट-डपट सुन रहे। इस उलझन से निकल कर ----एंटी एस्तेब्लिस्मेंट मोड़ ---में जाना हमेशा मुश्किल होता है।---------------------------------------------------------रामदेव में आन्दोलन को लीडरशिप देने की अक्षमता सामने है......लिपस्टिक लगाने वालों का मोमवत्ती जलाना बहुतों को रास नहीं आता....बावजूद इसके जनता की निराशा और विपक्ष को ख़त्म दिखाने कि पत्रकारों की जिद्द ने गैर राजनितिक मुहिम को उभरने का मौक़ा दे दिया। लेकिन कई सवाल उठ रहे हैं। लगातार तीन दिनों तक रामदेव की सलवार कमीज में पत्रकारों की दिलचस्पी किस गंभीरता का परिचायक है।---------------------------------------------------------------------------------------------रामदेव के अलावा कई लोग इस बात से वाकिफ हैं कि काला धन से भिड़ना कितना खतरनाक है। काला धन वाले कितने ताकतवर हैं इसे सब जानते। अपनी हैसियत घटा चुके दिल्ली के ये पत्रकार चिदंबरम की चेताबनी के बाद क्या करेंगे? क्या देश फिर उसी राह पर चलेगा जब लोगों की समस्याओं से आर एस एस का भूत दिखा कर मुंह फेर लिया जाएगा?
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गृह मंत्री पी चिदंबरम ने आठ जून को लगभग धमकाने वाले अंदाज में कहा कि ....(जन-आंदोलनों के ) कम्पे-टि-टिव कवरेज से देश की लोकतांत्रिक व्यवश्था को ख़तरा है। दिल्ली के कई टीवी चैनलों ने सरकार के इस खतरनाक इरादे की अनदेखी की। इस बयान का पीसी में जूता प्रकरण के दौरान कांग्रेसी बीट वाले पत्रकारों के रवैये से गहरा नाता है। ये नौबत क्यों आई कि हाल के आंदोलनों को सबक सिखाने के बाद अब निशाना मीडिया पर आ गया है। इसकी तह में जाना जरूरी है। -----------------------------------------------------------------------पिछले लोक सभा चुनाव से लेकर झारखंड विधान सभा चुनाव तक दिल्ली के रसूख वाले अधिकाश पत्रकार कांग्रेस की गोद में लोटते नजर आए। इसी दौरान ऐसा माहौल बनाया गया मानो देश की किसी ज्वलंत समस्या को उठाने के लिए पहले आपको इन पत्रकारों से सेक्यूलर होने का सर्टिफिकेट हासिल करना होगा। ये कांग्रेस और वाम प्रतिपक्ष का दुराग्रह रहा है। लेकिन केंद्र की सत्ता को खुश करने के लिए ये पत्रकार ख़म ठोक कर मैदान में आ गए। ऐसा सन्देश दिया जाने लगा मानो सेक्यूलर होने का सर्टिफिकेट लेने में नाकाम हुए तो कम्यूनल करार दिए जाएंगे। जनता हैरान होकर सवाल कर रही है कि सेक्यूलर का --एंटो- निज्म-- कम्यूनल कब से हो गया। ----------------------------------------------------------------------------------------------------समझदार लोग जानते हैं कि सेक्यूलरिज्म की अवधारणा सत्ता और शाशन के लिए है न कि आम जानो के लिए। संविधान कि मूल स्पिरिट मानती है कि भारत के लोग --इन एसेंसिअल -- धार्मिक हैं और रहेंगे। ऐसे में जनता दिग्भ्रमित हो जाती है जब मीडिया के लोग चुनाव विश्लेषण के दौरान सेक्यूलर वोट और कम्यूनल वोट की बात करने लगते हैं। वोटरों को सेक्यूलर और कम्यूनल घोषित करने के बाद अब बारी है समस्याओं को सेक्यूलर और कम्यूनल घोषित करने की। क्या भूख सेक्यूलर या कम्यूनल हो सकता है? ---------------------------तो फिर दिल्ली के इन पत्रकारों ने अन्ना का समर्थन कैसे कर दिया ये जानते हुए कि कांग्रेस अन्ना के पीछे आर एस एस का हाथ देखती है? कांग्रेस को तो ----तहरीर स्क्वयेर फेनोमेना ---- का डर सता रहा था। पर इन पत्रकारों को किसका डर था? दरअसल ये पत्रकार अपनी ही जाल में उलझ गए हैं। अपनी दूसरी पारी में कांग्रेस ने सोची समझी रण-नीति के तहत पक्ष और विपक्ष खुद ही होने का खेल खेल रही है। इशारा ये कि विपक्ष है ही कहाँ? जूता प्रकरण भी इसी सवाल को लेकर था। -----------------------------------------------------------कांग्रेस को खुश करने के लिए ये पत्रकार भी इसी दोहरी भूमिका में आ गए। यानि खुद ही पक्ष और खुद ही विपक्ष। इसके लिए न्यूज़ की एंगल और स्टूडियो में बहष का टोन एंड टेनर बदला गया। बार बार एंकरों ने बताया कि विपक्ष है ही कहाँ? आम तौर पर जनता मीडिया की बातों पर भरोसा करती है। लिहाजा ये दलील उनके दिमाग में बैठने लगी। जनता ने जानने की जहमत नहीं उठाई कि वाम और दक्षिण विपक्ष अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहे या नहीं। जंतर-मंतर पर अन्ना को मिला ये समर्थन इसी समझ का प्रतिफल थी। -----------------------------------नतीजा ये भी सामने है कि वाम विपक्ष जहां डिफेन्स की मुद्रा में है वहीँ दक्षिण विपक्ष हताश। इस असहज स्थिति का नजारा टीवी स्टूडियो की बहसों में देखा गया....जब वाम नेता कई बार एंकरों को फटकारते नजर आए....ये कहते हुए कि ----पत्रकारों की तरह सवाल करो ना कि राजनीतिक कार्यकर्ताओं की तरह। -----------------------------------------------------------------------------------------विपक्ष दबाव में हो और मीडिया एंटी इस्तेबलिस्मेंट न हो तो सत्ता तानाशाह हो ही जाती है। ऐसा बिहार में भी है और दिल्ली में भी। दोनों जगहों पर पत्रकार सरकारी दबाव झेल रहे और डांट-डपट सुन रहे। इस उलझन से निकल कर ----एंटी एस्तेब्लिस्मेंट मोड़ ---में जाना हमेशा मुश्किल होता है।---------------------------------------------------------रामदेव में आन्दोलन को लीडरशिप देने की अक्षमता सामने है......लिपस्टिक लगाने वालों का मोमवत्ती जलाना बहुतों को रास नहीं आता....बावजूद इसके जनता की निराशा और विपक्ष को ख़त्म दिखाने कि पत्रकारों की जिद्द ने गैर राजनितिक मुहिम को उभरने का मौक़ा दे दिया। लेकिन कई सवाल उठ रहे हैं। लगातार तीन दिनों तक रामदेव की सलवार कमीज में पत्रकारों की दिलचस्पी किस गंभीरता का परिचायक है।---------------------------------------------------------------------------------------------रामदेव के अलावा कई लोग इस बात से वाकिफ हैं कि काला धन से भिड़ना कितना खतरनाक है। काला धन वाले कितने ताकतवर हैं इसे सब जानते। अपनी हैसियत घटा चुके दिल्ली के ये पत्रकार चिदंबरम की चेताबनी के बाद क्या करेंगे? क्या देश फिर उसी राह पर चलेगा जब लोगों की समस्याओं से आर एस एस का भूत दिखा कर मुंह फेर लिया जाएगा?
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