विकास पुरूष लौटे मंडल राजनीति की गोद में
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संजय मिश्र
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५ अप्रैल को नीतीश कुमार को सुनना उन लोगों के लिए कसैला स्वाद वाला मेनू साबित हुआ होगा जो उन्हें खांटी विकास पुरूष के रूप में देखना पसंद करते... मौका था जेडीयू घोषणा पत्र के जारी होने का... पार्टी सुप्रीमो नीतीश ने ठसक से ऐलान किया कि निजी क्षेत्र में देश भर में आरक्षण की व्यवस्था की वे पैरोकारी करेंगे... ये आफिसियल है...घोषणापत्र का वादा है... यानि ये नहीं कह सकते कि चुनावी फिजा के बीच कोई बात यूं ही कह दी गई... नीतीश अब अपने मूल राजनीतिक प्रस्थान बिंदू की तरफ लौट रहे हैं...यानि मंडल राजनीति की आगोश में फिर से समा जाना चाहते.. उनके विरोधी अरसे से कहते आ रहे हैं कि जेडीयू का आरजेडीकरण हो रहा है... लेकिन अब ये पक्की बात है... राजनीतिक परिदृष्य पर गौर करें... निजी क्षेत्र में आरक्षण के सबसे बड़े पैरोकार एलजेपी सुप्रीमो राम विलास पासवान एनडीए में जा चुके हैं और माना जा सकता कि इस स्पेस को नीतीश भरना चाहते... उधर नरेन्द्र मोदी लगातार कह रहे कि अगला दशक पिछड़ों और दलितों के उत्कर्ष का समय होगा... तो क्या इस राजनीतिक चुनौती को देख नीतीश सर्वाइवल के लिए मंडल राजनीति की ओर मुड़ने को बाध्य हुए हैं? ... राजनीतिक समीक्षक कह सकते कि हाल के चुनावी सर्वेक्षणों के नतीजों से नीतीश हिल चुके हैं लिहाजा ऐसे कदम उठाना हैरान नहीं करना चाहिए... पर याद करने की जरूरत है कि इन्हीं सर्वेक्षणों में नीतीश बिहार में सबसे पसंद किए जाने वाले व्यक्ति हैं... पसंद करने वालों की फेहरिस्त में बीजेपी समर्थक बड़ी तादाद में हैं... तो क्या ये माना जाए कि गठबंधन तोड़ने के निर्णय के समय पसंद करने वाले इस तबके की इच्छा की अनदेखी करनेवाले नीतीश अब फिर से इनकी अनदेखी कर रहे और लालू शैली की ओर मुड़ रहे? ...दरअसल नीतीश विरोधाभासी व्यक्तित्व के दर्शन करा रहे हैं जो कि राजनीति में अनयुजुवल नहीं है... ... एक तरफ वे कहते कि उन्होंने सिद्धांत की कीमत चुकाई है... दूसरी तरफ जनाधार खिसकने की आशंका की व्याकुलता भी दिखा रहे... सत्ता के खेल का चरित्र निर्मोही होता है... इसे समझने में बिहार के मौजूदा राजनीति के इस चाणक्य से भूल हुई होगी ...ऐसा बिहार के बाहर के राजनीतिक पंडित मान रहे होंगे... वे ये भी सोच रहे होंगे कि नीतीश के लिए रास्ता बदलना आसान नहीं होगा... पर नीतीश ने पहले से ही गुंजाइश रख छोड़ी है... उनके कई पसंदीदा शब्द हैं जिनमें - इनक्लूसिव ग्रोथ- सबसे अहम है... नीतीश के इंक्लूसिव ग्रोथ में आरक्षण का तड़का ज्यादा घनीभूत है जो कि कांग्रेस के इंक्लूसिव ग्रोथ से अलग है .... नीतीश ने महादलित कार्ड को अपने इनक्लूसिव ग्रोथ के दायरे में अक्सर भुनाया है... लिहाजा जातीए राजनीति की ओर सरकना उनके लिए उतना भी मुश्किल नहीं होगा...
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संजय मिश्र
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५ अप्रैल को नीतीश कुमार को सुनना उन लोगों के लिए कसैला स्वाद वाला मेनू साबित हुआ होगा जो उन्हें खांटी विकास पुरूष के रूप में देखना पसंद करते... मौका था जेडीयू घोषणा पत्र के जारी होने का... पार्टी सुप्रीमो नीतीश ने ठसक से ऐलान किया कि निजी क्षेत्र में देश भर में आरक्षण की व्यवस्था की वे पैरोकारी करेंगे... ये आफिसियल है...घोषणापत्र का वादा है... यानि ये नहीं कह सकते कि चुनावी फिजा के बीच कोई बात यूं ही कह दी गई... नीतीश अब अपने मूल राजनीतिक प्रस्थान बिंदू की तरफ लौट रहे हैं...यानि मंडल राजनीति की आगोश में फिर से समा जाना चाहते.. उनके विरोधी अरसे से कहते आ रहे हैं कि जेडीयू का आरजेडीकरण हो रहा है... लेकिन अब ये पक्की बात है... राजनीतिक परिदृष्य पर गौर करें... निजी क्षेत्र में आरक्षण के सबसे बड़े पैरोकार एलजेपी सुप्रीमो राम विलास पासवान एनडीए में जा चुके हैं और माना जा सकता कि इस स्पेस को नीतीश भरना चाहते... उधर नरेन्द्र मोदी लगातार कह रहे कि अगला दशक पिछड़ों और दलितों के उत्कर्ष का समय होगा... तो क्या इस राजनीतिक चुनौती को देख नीतीश सर्वाइवल के लिए मंडल राजनीति की ओर मुड़ने को बाध्य हुए हैं? ... राजनीतिक समीक्षक कह सकते कि हाल के चुनावी सर्वेक्षणों के नतीजों से नीतीश हिल चुके हैं लिहाजा ऐसे कदम उठाना हैरान नहीं करना चाहिए... पर याद करने की जरूरत है कि इन्हीं सर्वेक्षणों में नीतीश बिहार में सबसे पसंद किए जाने वाले व्यक्ति हैं... पसंद करने वालों की फेहरिस्त में बीजेपी समर्थक बड़ी तादाद में हैं... तो क्या ये माना जाए कि गठबंधन तोड़ने के निर्णय के समय पसंद करने वाले इस तबके की इच्छा की अनदेखी करनेवाले नीतीश अब फिर से इनकी अनदेखी कर रहे और लालू शैली की ओर मुड़ रहे? ...दरअसल नीतीश विरोधाभासी व्यक्तित्व के दर्शन करा रहे हैं जो कि राजनीति में अनयुजुवल नहीं है... ... एक तरफ वे कहते कि उन्होंने सिद्धांत की कीमत चुकाई है... दूसरी तरफ जनाधार खिसकने की आशंका की व्याकुलता भी दिखा रहे... सत्ता के खेल का चरित्र निर्मोही होता है... इसे समझने में बिहार के मौजूदा राजनीति के इस चाणक्य से भूल हुई होगी ...ऐसा बिहार के बाहर के राजनीतिक पंडित मान रहे होंगे... वे ये भी सोच रहे होंगे कि नीतीश के लिए रास्ता बदलना आसान नहीं होगा... पर नीतीश ने पहले से ही गुंजाइश रख छोड़ी है... उनके कई पसंदीदा शब्द हैं जिनमें - इनक्लूसिव ग्रोथ- सबसे अहम है... नीतीश के इंक्लूसिव ग्रोथ में आरक्षण का तड़का ज्यादा घनीभूत है जो कि कांग्रेस के इंक्लूसिव ग्रोथ से अलग है .... नीतीश ने महादलित कार्ड को अपने इनक्लूसिव ग्रोथ के दायरे में अक्सर भुनाया है... लिहाजा जातीए राजनीति की ओर सरकना उनके लिए उतना भी मुश्किल नहीं होगा...
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