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संजय मिश्र
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तेलंगाना ने कांग्रेस को जोर का झटका दिया है। कड़वा घूँट पीने को मजबूर ये पुरातन पार्टी अब इस चक्रव्यूह से निकालने की कोशिश कर रही है। देश भर में इस मुद्दे पर चर्चाएँ गरम हैं। कोई छोटे राज्य बनाम बड़े राज्य के विमर्श में लगा है तो किसी को राष्ट्रीय अखण्डता पर खतरा नजर आ रहा है। राष्ट्र के जीवन में ऐसे मौके आते हैं जब सरकारों के साथ- साथ राजनीतिक दल , आम जन और सोच-विचार वाले लोग असहजता महसूस करते। अभी चहुँ ओर यही दिख रहा है। के चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना के मुद्दे पर हो रहे लुका- छिपी के खेल की सीमा को उघार कर रख दिया है।
आखिर ऐसी मांग उठती ही कयों है ? कहा जा रहा है की विकास में पिछड़ने वाले क्षेत्रों से इतनी बड़ी मांग नहीं उठाई जानी चाहिए । संभव है ऐसे सवाल करने वाले विकास को समग्रता में देखने की जगह संकुचित अर्थों में देखते हों ....दो चार फैक्ट्रियां स्थापित कर देने और सड़कें बना देने को ही वो विकास समझते हों। यानी वे मान रहे हैं की अलग राज्य की मांग करने वाले देश के साथ इन्जस्तिस कर रहे हैं।
दरअसल मामला इतना सरल नहीं है। माहीनी से देखें तो परत-दर-परत सवाल उठते जायेंगे ..... सत्ता में बैठे लोगों के नीयत की निरंकुशता , भेद-भाव पूर्ण नीतियाँ और आकांक्षाओं के दमन की कहानियां निकलती ही चली जाएंगी । इन परतों के बीच से अनदेखी की जो टीस निकलती हैं उसे ' चाहें " तो साफ़ सुन सकते हैं। लेकिन इस कराह की वेदना को समझने के लिए " मलिन ' मन तैयार कहाँ। ये मलिन मन कार्यपालिका , विधायिका , और चौथे स्तम्भ में कब्जा जमाए बैठे हैं । वे तेलंगाना जैसे हालात में भी अपनी कारस्तानी से ध्यान भटकाने में लगे हैं।
ऐसे ही तत्वों को के सी आर के अनशन पर एतराज । सन्दर्भ से पड़े होकर मणिपुर की इरोम शर्मिला के अनशन की याद दिलाई जा रही है। बेशक इरोम श्रधेय हैं... उनकी कुर्बानी नमन योग्य हैं....गांधीजी के संघर्ष की नैतिक गाथा का साक्षात दिग्दर्शन है उनका अनशन । के सी आर ने इसी हथियार को आजमाया। इसका उद्देश्य जो भी हो... पर शायद भारत के नीति-नियंताओं को कोई भी मांग मानने के लिए खून-खाबा देखने की आदत हो गई है। वे भूल जाते हैं की ऐसी आदत देश की संवैधानिक मर्यादाओं के लिए शुभ नहीं।
सन्दर्भ की बात चली तो थोड़ी बात बिहार की कर लें .......मिथिला के मानस के उद्वेग की। आपके जेहन में उमड़ रहे कई सवालों के जवाब शायद आप तलाश पायें। मिथिला इसी राज्य बिहार का एक अंग है। पौराणिक-एतिहासिक मिथिला का दो-तिहाई हिस्सा बिहार में और शेष नेपाल में पड़ता है। कभी मौक़ा मिले और समय हो तो बिहार के हुक्मरानों के भाषण सुने। इन्हें ही क्यों ....बिहार की मीडिया पर भी नजर गड़ाएं । बिहार की महिमा का जब ये बखान करते तो भगवान् बुध ही इन्हें नजर आते। भगवान् महावीर कभी-कभार याद आते....पर जनक नहीं...माता सीता नहीं। मिथिला का स्मरण करा दें तो इनकी भावें तन जाती। इस इलाकेकीमिटटी, पानी, हवा...ये सब बिहार की संपदा हुई पर ' मिथिला' शब्द और यहाँ के लोगों से परहेज। यहाँ की विरासत पर गर्व करने की बजाए इन्हें शर्म का अनुभव क्यों ?
सूना होगा आपने की मैथिली भाषा संविधान की आठवीं सूची में दर्ज है...वो साहित्य अकादमीमेभी है। यानिइन जगहों पर बिहार का मान बढ़ा रही । पर क्या राज्य के शाषकों को इस पर नाज है ? हर सेन्सस रिपोर्ट में मैथिली भाषियों की संख्या कम बताने की इनकी साजिस क्या किसी से छुपी रह गई है ? थोड़ा पीछे जाएं...शिव पूजन सहाए जैसे ख्यातिलब्ध साहित्यकारों ने मैथिली की परिचिति खत्म करने का बीड़ा क्यों उठाया था ? पाठ्यक्रमों से मैथिली को बार-बार हटाने के कुचक्र क्या राजकीय गर्व का अहसास हैं?
मैथिली जब आठवीं अनुसूची में शामिल की गई तो राष्ट्रीय टीवी चैनलों ने भी इसे प्रमुखता से दिखाया। संविधान संशोधन करना पडा था...लिहाजा ये न्यूज़ थी। लेकिन बिहार के सर्वाधिक लोकप्रिय चैनल ने इस खबर को दिखाने की जहमत नहीं उठाई। इस चैनल को बिहार की स्वर कोकिला शारदा सिन्हा की आवाज नहीं सुहाती...क्योंकि वो मिथिला क्षेत्र से आती हैं...जबकि मनोज तिवारी ' अप्पन ' बने हुए हैं।
देश के किसी कोने में चले जाएं...गैर बिहारियों से बात करें। बिहार का नाम लेते ही वो भोजपुरी का जिक्र करेंगे। यही हाल इन जगहों के समझदार समझे जाने वाले पत्रकारों का है। अधिकाँश को पता नहीं की मैथिली बिहार की ही भाषा है। बिहार सरकार की गर्व की अनुभूति और काबिलियत ( ? ) का ये जीता जागता नतीजा है। पटना से छपने वाले हिन्दी के अखबारों को पलट कर देखें। हेडिंग्स और कार्टून के टेक्स्ट आपको भोजपुरी में मिलेंगे। इन अखबारों की ये किर्दानी सालों से है....अछा है...पर मैथिली में क्यों नहीं। इन्हें मिथिला का पाठक/ खरीदार चाहिए पर मैथिली नहीं चाहिए...बिलकुल वैसे ही जैसे राज्यके नेताओं को मिथिला के ' लोग ' चाहिए जिन पर सत्ता की धौंस जमाएं पर इन " लोग ' के हित की परवाह नहीं।
तेलंगाना विवाद के बाद से मिथिला में भी अलग राज्य की मांग को लेकर उबाल है। विभिन्न सांस्कृतिक संगठन शांतिपूर्ण तरीके से ये मांग रख रहे हैं। इनका आवेस है की मिथिला का अस्तित्व अलग राज्य बनाने से ही बचेगा। इस जन-उभार को देख पार्टी लाइन से अलग होकर बड़े राजनीतिक नेता भी इसके समर्थन में वक्तव्य दे रहे हैं। मीडिया में भी इसके मुतलिक खबरें आ रही हैं। लेकिन गौर करें तो हर जगह ' मिथिलांचल ' शब्द पाएंगे। ये जो शब्द है ' मिथिला' वो परिदृश्य से ओझल है। यानि मिथिला बन गई मिथिलांचल। ये कैसे हो गया...क्यों हो गया ? पटना के सत्ता प्रतिष्ठान और मीडिया ने दशकों से ' मिथिलांचल ' शब्द का इतना इस्तेमाल किया है की मिथिला के लोग भी इसी शब्द का प्रयोग करने लगे हैं। इन्हें रत्ती भर अहसास नहीं की इसके पीछे का रहस्य क्या है...इसके क्या मायने हैं ? जिन पत्रकार बंधुओं को रिसर्च की प्रवृति में यकीन हो वे इस साजिश पर से पर्दा उठा सकते हैं।
यही कोई पांचवें दशक के शुरुआत की कथा है ये...आज़ादी मिली ही थी। बिहार को मिथिला से आने वाले राजस्व पर बड़ा अब्लंब था। राज्य के राजस्व में इस इलाके का योगदान ४९ फीसदी था.... यानि लगभग आधा। साल २००० में जब राज्य का बंटवारा हुआ उस समय राज्य के राजस्व में मिथिला का योगदान १२ फीसदी ही रह गया था। सरल भाषा में कहें तो मिथिला के राजस्व देने की क्षमता चार गुना घट चुकी थी। यानि यहाँ के लोग चार गुना गरीब हो चुके थे। ऐसा कैसे हो गया ? क्या मिथिला से मिलने वाले राजस्व को इसी इलाके के विकास में खर्च किया गया ?
बाढ़ से मची तबाही ने इस इलाके को झकझोर कर रख दिया है। बाढ़ पहले भी आती थी। तभी तो लोर्ड वेवेल ने इसके निदान के लिए महत्वाकान्ची परियोजना बनाई थी। बराह क्षेत्र में कोसी पर हाई डैम बनाना था। अनुमान लगाया गया की परियोजना के पूरा होने पर ये इलाका दुनिया के समृध्तम क्षेत्रों में शुमार हो जाएगा। लेकिन आज़ादी क बाद बनी बिहार की पहली सरकार ने बहाने बनाते हुए इस परियोजना से हाथ खींच लिया। उन्हें डर था की मिथिला समृध हो जाएगी तो वहाँ की जनता ' दुहाई सरकार ' .. और ..' जिंदाबाद ' के नारे नहीं लगाएगी। बिहार सरकार की अनिच्छा देख केंद्र सरकार ' भाखड़ा - नांगल ' परियोजना की और उन्मुख हुई । पंजाब का काया-कल्प हो गया। आज उसी पंजाब के खेतों में मिथिला के मजदूर और किसान से मजदूर बन गए लोग फसलें काटने जाते हैं। इधर कोसी डैम में लगने वाले पैसों से दामोदर वैली परियोजना अस्तित्व में आई। साजिश करने वाले झादखंड में हुए निवेश से मालामाल हुए।
दिल्ली की सडकों पर ' बिहारी ' होने के दंश झेलने वाले, पंजाब के खेतों में अफीम मिली चाय पीकर काम करने को मजबूर , अपमान सहकर गुजरात में विकास का सोपान गढ़ने वाले और मुंबई में नफ़रत के बीच पेट की आग बुझाने वाले ७० फीसदी हाथ दर असल उसी मिथिला के हैं। जी हाँ , उसी मिथिला के जिसने ज्ञान और दर्शन के क्षेत्र में कभी देश का मार्ग-दर्शन किया था। आज वही समाज दो जून रोटी के लिए तड़प रहा है....जिन्हें कुछ मांगने पर मिलती है अवहेला। यहाँ के लोगों की सूनी आँखों में यही सवाल तैर रहे हैं -- क्या उसकी पहिचान और जीवन-शैली मिटा देने से ही बिहार और देश का भला होगा ?
यही घुटन कमोवेश ' malla प्रदेश ', ' ब्रज ' , ' बुंदेलखंड ', और ' बघेलखंड ' में भी है। क्या इनकी पहचान मिटा देने से ही बिहार, यूपी , और एमपी का कल्याण होगा ? ये तीन बड़े कृत्रिम राज्य दिल्ली की कुर्सी के लिए जरूरी हैं लेकिन इस संकुचित लाभ के पीछे ये नहीं भूलना चाहिए की देश के पुनर्गठन का काम रह गया है। उसे पूराकर के ही देश की विविधता के आतंरिक बंधन को मजबूती दी जा सकती है। नहीं तो इन इलाकों में अलग राज्य की अकुलाहट बनी रहेगी। दूसरा राज्य पुनर्गठन आयोग बने तो इस अकुलाहट को महसूस करे। ऐसे आयोग को राजनीतिक फायदे के लिए उठाए जा रहे अलग राज्यों की मांग से सतर्क रहने की जरूरत है। क्योंकि दूरदर्शिता के अभाव में और तात्कालिक लोभ में कई ऐसे राज्य बन गए जो की नहीं बनने चाहिए थे।
4 टिप्पणियां:
मिथिला राज्य की माँग बहुत पुरानी है। अपनी संस्कृति, अपनी भाषा, अपना व्याकरण, अपनी लिपी और जनसंख्या के लिहाज से मिथिला एक अलग राज्य होना भी चाहिए।
सुन्दर और समसामयिक आलेख।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
Can any one justify that why Mithila Region day by day sliding down on the human index? In 1950's the per capita income (PCI)of the region wqas more than 70% of the average PCI of India and now it has wen to less than 20% of the National average. PCI of the Mithila in Bihar is Rs.5978 while PCI of Bihar excluding Mithila is Rs. 7260 and still you are sleeping then see tha National average PCI which is Rs. 31278. All data from Economic Report of Bihar 2008-09 and Economic Survey of India 2008-09.
After independance Mithila is with Bihar, if it is going down day by day then only confused Maithils can say that Mithila will prosper in Bihar.
Antarrashtriya Maithili Parishad, Delhi Unit
ampdelhiunit@gmail.com
सुंदर,सहज प्रस्तुति। उठाए गए कई मुद्दों पर विचार आवश्यक।
www.krraman.blogspot.com
www.maithilionline.blogspot.com
मिथिला भाषा मिथिला की संस्कृति इसे एक अलग राज बनाता है
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