life is celebration

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27.9.10

हे राम !.....बिहार को कौन बचाएगा

ज्योति बहुत खुश है। बहेड़ा के राजकीय कन्या प्राथमिक विद्यालय में चौथी क्लास में पढने वाली ये बच्ची चहकते हुए कहती है -- जब वो नौवीं क्लास में जाएगी तो उसे भी साईकिल मिलेगा। ज्योति खुश इसलिए भी है कि अपने सहपाठियों के संग वो भी दरभंगा हो आई ....पहली बार ... ये बच्चे प्रदर्शन करने गए थे। हाथों में तख्तियां लिए ये बच्चे डी एम से गुहार लगा रहे थे कि ---" स्कूल में ताड़ी खाना नहीं चलेगा "। ज्योति प्रदर्शन के मायने नहीं समझती और न ही उसे अहसास है कि उसके स्कूल को ढहा दिया जाएगा।
आप समझ रहे होंगे कि मैं कोई पहेली बूझा रहा हूँ....पर ये सच है। दरभंगा का शिक्षा विभाग जिले के बहेड़ा के इस स्कूल को तोड़ने की मुहिम में लगा है। इसलिए नहीं कि नया भवन बनना है ....इसलिए भी नहीं कि स्कूल को नए परिसर में शिफ्ट करना है। १९ अगस्त २०१० को जिला शिक्षा अधीक्षक ने बेनीपुर के ब्लोक शिक्षा प्रसार अधिकारी को लिखित आदेश दिया कि स शस्त्र बल के साथ स्कूल भवन को तोड़ने की कार्रवाई को अंजाम दिया जाए। अगले ही दिन इसकी तामील के लिए जिले के डी एम संतोष कुमार मल्ल ने .....फ़ोर्स को बहेड़ा भेज दिया। लेकिन ग्रामीणों के भारी विरोध के कारण उन्हें बैरंग लौटना पड़ा।
इस कहानी में कई पात्र हैं। एक पक्ष है बहेड़ा के उन महा दलित परिवारों का जिन्होंने स्कूल बनबाने के लिए जमीन दी थी। ये स्कूल १९५५ में बना जबकि इसका सरकारीकरण १९६१ में हुआ। महा दलित बस्ती के बीच स्थित इस स्कूल के जमीन दाताओं में कुशे राम , राजेंद्र मोची , कमल राम, फेकू राम, उपेन्द्र राम शामिल हैं। वे बताते हैं कि बस्ती के बच्चों का पड़ोस के सवर्ण बहुल गाँव के स्कूल में जाकर पढाई करना उस दौर में कितना मुश्किल था। सरकारीकरण केसाथ ही स्कूल की जमीन बिहार के राज्यपाल के नाम कर दी गई। यही कारण है कि १९६१ से २०१० तक राज्यपाल के पदनाम से ही जमीन की रसीद कटी है। महा दलितों के बीच शिक्षा के प्रसार के लिए बस्ती के लोग इस स्कूल को कन्या उच्च विद्यालय में उत्क्रमित करने के लिए प्रयासरत हैं।

इस कहानी की दूसरी पात्र हैं भगवनिया देवी .... महा दलित वर्ग से ही आती हैं। ठसक के साथ कहती हैं कि बहेड़ा के विधायक और आर जे डी के प्रदेश अध्यक्ष अब्दुल बारी सिद्दीकी का उन्हें आशीर्वाद मिला हुआ है। इसी राजनीतिक नजदीकी की बदौलत भगवनिया देवी साल १९८९ में स्कूल भवन के हिस्से में कब्ज़ा ज़माने में कामयाब हो गई। जमीन दाताओं के लगातार विरोध के बाद साल १९९० में प्रशासन ने स्कूल से कब्ज़ा हटा दिया। कुछ साल चुप बैठने के बाद , साल १९९६ में भगवनिया देवी एक बार फिर स्कूल भवन में कब्ज़ा ज़माने में सफल हुई। इस बार उसने स्कूल भवन में ताड़ी खाना ही खोल लिया। भगवनिया देवी ने दावा किया कि उसके पास जमीन के कागजात मौजूद हैं। ग्रामीणों के लगातार विरोध के बाद प्रशासन ने जांच के आदेश दिए। जांच में कागजात फर्जी पाए गए। आखिरकार प्रशासन ने साल २००९ के जनवरी में ताड़ी खाने को हटा दिया।

इस प्रकरण में तीसरा कोना आर जे डी नेता सिद्दीकी का है। वो जे पी आन्दोलन की उपज हैं और देश का मीडिया उन्हें साफ़ छवि वाला नेता मानता है। उन्हें चुनाव जीतने के लिए महा दलित कार्ड की जरूरत हो ...ऐसी विवशता नहीं है। दर असल उन्होंने इसे प्रतिष्ठा का सवाल बना दिया है। भगवनिया देवी को फायदा दिलाने की उनकी बेचैनी पर बहेड़ा के पूर्व मुखिया बैद्यनाथ मल्लिक रौशनी डालते हैं। उनका कहना है कि भगवनिया देवी की नतनी सिद्दीकी के पटना आवास में नौकरी करती हैं। अपने इसी स्टाफ को उपकृत करने के लिए आर जे डी नेता ने विधान सभा में कई बार ध्यानाकर्षण प्रस्ताव रखा। इसमें भगवनिया देवी के साथ न्याय करने कि गुहार लगाई गई। अपने मकसद में कामयाबी नहीं मिलने के बाद सिद्दीकी ने इसी साल अगस्त महीने में एक बार फिर ध्यानाकर्षण प्रस्ताव रखा। उन्होंने सरकार के मंसूबे पर एतराज जताते हुए स्पीकर से मामले में हस्तक्षेप का आग्रह किया। स्पीकर उदय नारायण चौधरी महा दलित वर्ग से आते हैं। आपको याद हो आएगा वो प्रकरण जब स्पीकर चौधरी ने मुख्य मंत्री नीतीश कुमार के समर्थन में नारा लगा दिया था। खैर , अब भगवनिया देवी के मामले में दरभंगा के अधिकारियों को स्पीकर कार्यालय से ही लिखित और मौखिक आदेश मिल रहे हैं।

मामले का चौथा बिंदू जिले के अधिकारियों से जुड़ा है। उनकी मनोदशा जानने के लिए फिर रूख करते हैं दरभंगा समाहरणालय के उस वाकये का जब बहेड़ा स्कूल के छात्रों ने २१ अगस्त को वहां प्रदर्शन किया था। प्रदर्शन के संबंध में जब पत्रकारों ने डी एम मल्ल की प्रतिक्रिया चाही , तो वे मीडिया कर्मियों से ही उलझ गए। इस दौरान कई टी वी चैनलों के कैमरे टूट गए। बाद में डी एम ने पत्रकारों के साथ बैठक में खेद जताया और अपनी बेबसी बताई। उन्होंने खुलासा किया कि स्कूल भवन गिराने के लिए उन पर पटना से जबरदस्त दबाव बनाया जा रहा है। इस दबाव को जिला शिक्षा विभाग की लाचारी में भी टटोला जा सकता है....अपने ही स्कूल को ढहाने का फरमान और वो भी बिना कोई वजह बताए। सूत्रों की माने तो शिक्षा विभाग स्कूल भवन तोड़ लेगा और तब भगवनिया देवी को कब्ज़ा दिलानेका मार्ग प्रशस्त होगा।
स्कूल बचाने की मुहिम में लगे लोगों ने अब हाई कोर्ट की शरण ली है। इस बीच बेनीपुर अनुमंडल कोर्ट में पहले से पेंडिंग इस मामले के जल्द निष्पादन का आदेश दरभंगा जिला कोर्ट ने दिया है। इसके लिए ४ अक्टूबर तक का समय दिया गया है।
विधान सभा चुनाव की प्रक्रिया चालू है। सत्ताधारी दल की ओर से मुख्य मंत्री नीतीश कुमार स्टार प्रचारक हैं। उनकी पिछली जन सभाओं को याद करें तो चुनाव प्रचार के दौरान वे महा दलितों के उत्थान की बात करेंगे। सबसे ज्यादा जोर बालिका शिक्षा योजना पर होगा उनका.... छात्राओं को साईकिल देने की स्कीम पर वे इतराने से नहीं चूकेंगे । जाहिर है बहेड़ा स्कूल की ज्योति भी ऐसे भाषण सुन आह्लादित होगी...अपने अरमानों को पंख लगने के सपने देखेगी....इस बात से बे-खबर कि उसके स्कूल को जमींदोज करने की कोशिशें जारी हैं....

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