संजय मिश्र
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जंतर-मंतर पर हुए एक-दिनी उपवास ने फिर साबित कर दिया कि लोगों पर अन्ना हजारे की पकड़ बरकरार है। आन्दोलन के इस सांकेतिक चरण ने जहां कई मिथक तोड़े वहीं रणनीतिक कौशल की नुमाइश भी हुई। दिन ढलने के साथ आन्दोलनकारियों में संतोष का भाव था। पहले की तरह इस बार भी तनातनी का माहौल बना। विश्लेषक नए सिरे से आन्दोलन पर विमर्श करते नजर आये। उधर, टीवी सेटों पर नजर गडाए आम-जन मीडिया के रंग बदलने को बड़ी उत्सुकता से देखते रहे।
२५ मार्च ....कई मायनों में नई हकीकत बयां कर गया। ये साफ़ हो गया कि मीडिया का बड़ा तबका टीम अन्ना पर पूरी तरह हमलावर रहने वाला है। इस वर्ग को पता चल गया है कि उनकी बेरुखी के बावजूद लोगों का इस आन्दोलन से अनुराग है। राजनीतिक जमात को भी अहसास हुआ कि टीवी चैनलों में कम कवरेज से बेपरवाह लोग चिलचिलाती धूप में जंतर मंतर पर डटे रह सकते हैं। ये अकारण नहीं कि बयानों की तल्खी के बीच राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया सावधान रही।
बेशक, उपवास के दौरान इस्तेमाल हुए एक कहावत (मुहावरे) पर संसद में हंगामा हुआ। क्या ये विश्वास किया जा सकता है कि सदन में बैठने वालों को ये मालूम न हो कि ' चोर की दाढी में तिनका ' एक कहावत है ...... और ये कि इसका अर्थ है---दोषी का चौकन्ना रहना --- ? फिर ये हंगामा क्यों ? असल में टीम अन्ना का निशाना इस बार व्यापक था। -एन डी ए - के संयोजक शरद यादव मुहावरा प्रकरण से जुड़ गए। देश के लोक जानते हैं कि साफ़ छवि वाले शरद भाषणों के दौरान अक्सर बहक जाते हैं ..... संसद में भी और संसद के बाहर भी। राहुल गांधी पर उनके अमर्यादित बयान से कांग्रेसी नेता बेहद नाराज हुए थे। बावजूद इसके २६ मार्च को संसद में टीम अन्ना पर तिलमिलाए शरद यादव का वही कांग्रेसी मेज थपथपा कर साथ दे रहे थे।
कांग्रेसी, दरअसल उस मकसद को कामयाब होता देख रहे थे जिसके तहत महीनो पहले बड़े जतन से यू पी ए सरकार के कुछ मंत्रियों ने आन्दोलन को टीम अन्ना वर्सेस संसद में तब्दील करने की कोशिश की थी। कांग्रेस की सधी प्रतिक्रिया से संकेत मिलने लगा है कि पार्टी अब आन्दोलन के प्रति आक्रामक नीति का त्याग करने के मूड में है। सुषमा स्वराज का संसद में अन्ना के साथियों पर बरसना इस बात को दर्शा गया कि २०१४ चुनाव से पहले का डेढ़ साल बीजेपी अपने पाले में रखना चाहती है। यानि अन्ना का फोकस में रहना अब बीजेपी नेताओं को रास नहीं।
सांसदों के लिए तय करना मुश्किल हो रहा था कि आन्दोलनकारियों के खिलाफ निंदा प्रस्ताव कौन लाए ? आखिरकार स्पीकर की तरफ से टीम अन्ना के विवादित बयानों को अनुचित और अस्वीकार्य बताया गया। दिलचस्प है कि इस कार्यवाही के दौरान तीन सांसदों ने अभद्र शब्दों का इस्तेमाल कर दिया। एक मौके पर तो स्पीकर को याद दिलाना पड़ा कि सदस्य संसद की गरिमा पर बात कर रहे हैं। भले ही सांसदों के अभद्र शब्दों को एक्सपंज कर दिया गया लेकिन कार्यवाही को टीवी पर देखने वाले से सांसदों का आचरण छुप नहीं सका।
टीम अन्ना से जुड़े विशेषाधिकार हनन का मामला अभी लंबित है। जाहिर है इसे अमल में लाने पर टकराव की नौबत बनेगी । यह सन्देश जाएगा कि टकराव संसद और जनता के बीच है । साथ ही अवमानना के लपेटे में आने वाले याद दिलाएंगे कि करीब पाने दो सौ दागी व्यक्ति संसद में हैं। क्या कोई सांसद कह पाएगा कि संसद में सभी पाक-साफ़ हैं ? जिस जल्दबाजी में निंदा प्रस्ताव पास हुआ उससे स्पष्ट है कि समझदार सांसद टकराव से बचना चाहते हैं। उन्हें पता है कि उनके विशेषाधिकार और कोर्ट के अवमानना के अधिकार के कोडिफिकेसन की मांग उठने लगी है। टीम अन्ना के रणनीतिक बदलाव से भी वे सचेत हैं।
टीम अन्ना में समझ बनी है कि राजनीतिक वर्ग के आचरण का जनता से सीधा सामना कराया जाए। इसी के तहत सांसदों के संसद में दिए गए भाषणों की फिल्म जंतर-मंतर पर जनता को दिखाई गई। ये जताया गया कि नेताओं की कथनी और करनी में फर्क कितना गहरा है। जाहिर है इस तरीके से एक्सपोज होना कोई नेता नहीं चाहेगा। वो तो इस सिधांत पर चलता है कि पब्लिक मेमोरी बेहद अल्प होती है । इसके आलावा भ्रष्टाचार से लड़ते हुए मारे गए व्हिसल ब्लोअर्स के परिजनों को भी उपवास स्थल पर लाने में टीम अन्ना सफल हुई। फिल्म के जरिये उनकी साहसिक कहानिया बताई गई। ये प्रभावित परिवार देश के अनेक राज्यों से आए थे और उन राज्यों में विभिन्न दलों की सरकारें हैं और रही हैं। ये बताया गया कि पीड़ितों के साथ इन सरकारों ने न्याय नहीं किया है।
मीडिया सन्न रह गया। बेगुसराय के शशिधर मिश्र जैसे अनेक आर टी आई कार्यकर्ताओं की सहादत से दिल्ली के पत्रकार बिलकुल अनजान थे। मीडिया अब ये आरोप लगाने की सूरत में नहीं था कि टीम अन्ना की नजर राज्यों के भ्रष्टाचार पर नहीं है। कांग्रेस ब्रांड सेक्यूलरिज्म के पैरोकार जो पत्रकार रामदेव को सांप्रदायिक साबित करने पर तुले हैं उन्हें अन्ना और रामदेव का हाथ मिलाना पसंद नहीं आ रहा। मीडिया का अकबकाना साफ़ दिख रहा था। लिहाजा एक मुहावरे के बहाने गंभीर मुद्दों को स्काई-जैक कर लिया गया। कांग्रेस की --बी - टीम-- का अक्स दिखाने वाला एक राष्ट्रीय टीवी चैनल तो दो दिनों तक डिस्क्लेमर ही दिखाता रह गया। इस चैनल को समझ नहीं आ रहा था कि लालू यादव द्वारा कहे गए मुहावरे ---धान के रोटी तवा में , अन्ना उड़ गए हवा में ---- के लिए कैसा डिस्क्लेमर दिखाएँ।
अन्ना ने अपने भाषण में कहा कि सरकार २०१४ तक जन लोकपाल पारित करा दे। इतना लम्बा समय देने पर बहस छिड़ी हुई है। लेकिन पोलिटिकल क्लास के लिए ये समय काफी होगा ....अपने स्याह पक्ष पर गौर करने के लिए। टकराव से बेहतर है कि नेता इस दौरान चुनाव सुधार की दिशा में सकारात्मक पहल करें। ये कदम उनके वोटर का उन पर भरोसा कायम करने में मददगार होगा। ये देश के हित में होगा। मीडिया भी इसे समझे तो बेहतर है।
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