हे पार्थ.. मुझे मत
संभालो
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संजय मिश्र
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योगेन्द्र और
प्रशांत को धकियाए जाने पर जितनी हलचल आआप में है उससे कहीं ज्यादा बेचैनी मीडिया
और बौद्धिकों के एक हिस्से के बीच पसरी है... रूथलेस होकर देखें तो कह सकते कि इस
प्रकरण को लेकर इस जमात में ही दरार सतह पर आ गई है...ये खलबली महानता थोपने की
जिद पर अड़े पत्रकारों, पेशेवरों और प्रोफेसरों के कारण पनपी है... साथ ही उस
लालसा के कारण भी जन्मी है कि केजरीवाल को मोदी विरोध की देशव्यापी धूरी बनाया जाए
... धूरी बनाने के लिए मफलर मैन पर आदर्शवादी राजनीति करने वाले का मुलम्मा चढ़ाया
जाए।
जिस दिन योगेन्द्र
और प्रशांत पीएसी से अपमानित करके निकाले गए उस दिन वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून
बाजपेयी का चेहरा उड़ा हुआ था... ... इस पत्रकार के कहे एक-एक शब्द में केजरीवाल
के लिए निराशा झांक रही थी... मीडिया के भीतर ..देशव्यापी विस्तार और मोदी विरोधी
धूरी की मुहिम के एक चाणक्य पुण्य भी रहे हैं...पर मकसद के फिसलने के गम में डूबने
वालों में वे अकेले नहीं हैं ... शपथ ग्रहण समारोह के दिन ही बिजली गिरी थी
इनपर... जब केजरीवाल ने ऐलान कर दिया था कि फिलहाल वे दिल्ली से हिलेंगे नहीं...
मतलब ये कि न तो वे वैकल्पिक और आदर्श वाली राजनीति का भार सह सकते और न ही इंडिया
भर में विस्तार की तत्काल इच्छा रखते।
केजरीवाल ने साफ संकेत
किया है कि प्रतीकों की राजनीति को जमीन पर उतारना संभव नही ... ऐसा करना
व्यावहारिक नहीं... बावजूद इसके योगेन्द्र गुट के जरिए जाति और धर्म की राजनीति का
इस्तेमाल करने से गुरेज नहीं करने वाले केजरीवाल पर दबाव बनाया गया... उस
योगेन्द्र को अगुआ बनाया गया... वैकल्पिक राजनीति का पहरूआ बनाया गया... जी हां...
उसी योगेन्द्र को जिन्होंने लोकसभा चुनाव के दौरान अपनी जीत सुनिश्चित करने के
उमंग में जातिवादी कार्ड खेला था...उन्होंने खास जाति के वोटरों के बीच यादव होने
का हवाला दिया था... अभी के प्रकरण में योगेन्द्र को लाभ हुआ है....इस संघर्ष ने
उनका कद और बड़ा किया है।
गौर करने वाली बात
है कि केजरीवाल की पार्टी के नेता निहायत ही मद्धम स्वर में नई राजनीति की बात
करते...पार्टी के बाहर वाले उनके पैरोकार ही नई राजनीति को उच्च स्वर देते आए
हैं... केजरीवाल के लोग पहले से ही वो सारे हथकंडे अपनाते रहे हैं जो पारंपरिक
राजनीति के दायरे में आती है ... इस बार के दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले भी अंदर
वाले लोग इस हकीकत पर बेपर्द होने से बचने के लिए बाहर वालों का सहयोग लेते रहे...इसे
ढकते हुए मीडिया ने केजरीवाल के विरोधियों की चाल को नकारात्मक राजनीति करार देकर
पंक्चर कर दिया।
मौजूदा प्रकरण में वही
शब्द सामने तैर रहे हैं जिन्हें नकारात्मक कहा गया था...आशुतोष धूंध साफ नहीं करते
कि अल्ट्रा लेफ्ट की उनकी परिधि में प्रशांत ही हैं या केजरीवाल का – अराजक हूं-
वाला उद्घोष भी... केजरीवाल के विरोधियों को नकारात्मक कहने वाले पत्रकार सन्न
हैं...कांग्रेस का विकल्प बनाने के सपने, मोदी विरोध की धूरी ठोकने की चाहत और इस
लक्ष्य की खातिर जिस केजरीवाल पर महानता थोपने की जद्दोजहद है वही नायक फिलहाल तैयार
नहीं हो रहा...वैसे ही जैसे हल जोतने वाला बैल अचानक जुआ गिराकर बैठ जाए... केजरीवाल
जानते हैं कि दिल्ली जीत के समय लालू और नीतीश सरीखे नेताओं की प्रशंसा लंबे समय
के लिए नहीं है... उन्हें इत्मिनान नहीं है कि रिजनल क्षत्रप उनका नायकत्व स्वीकार
कर ही लेंगे।
आआप में दखल रखने
वाले मीडिया के लोगों और बैद्धिकों में सपने बिखरने से मायूसी है... ... उनकी चाहत
और केजरीवाल की रणनीति के बीच टकराव से वे आहत हैं... विचारों का घर्षण कह कर वे इस
संकट से उबरने के संकेत भी दे रहे हैं... वे अभी योगेन्द्र गुट पर दांव लगाए
रखेंगे ताकि केजरीवाल पर दबाव बनाए रखा जाए... सुलह हो जाए... इसमें नाकाम रहे तो
वे आखिरकार केजरीवाल पर ही आस्था जताते पाए जाएंगे... मफलर मैन की शर्तों पर ही...पार्टी
के कनविनर पद पर बने रहने वाले महत्वाकांक्षी केजरीवाल मुफीद वक्त का इंतजार
करेंगे...पैर पसारने के लिए... और तब ये बाहरी लोग सुप्रीमो केजरीवाल को ही सेवियर
करार देने से नहीं हिचकेंगे... इंडिया के इस तरह के कथित समझदार लोगों का ये शगल
रहा है।
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