मोहन भागवत का बयान एसिमिलेशन की चाहत तो नहीं?
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संजय मिश्र
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उन लोगों को भी भारत, भारतीय और भारतीयता शब्द की याद सताने लगी है जो इंडिया और इंडियन शब्द से बांए-दांए होना कबूल नहीं करते ... मोहन भागवत ने हिन्दू शब्द की आरएसएस वाली व्याख्या को महज दुहरा दिया है...ये अहम नहीं कि इन बातों को वे पहले कहते थे तो काना-फूसी भी नहीं होती थी... अभी इस शब्द पर विमर्श चल पड़ा है... संविधान याद आने लगा है इंडिया शब्द के पैरोकारों को... ऐसा लगता है अब वे भारतीय शब्द को रियायत देने के मूड में हैं... ये रियायत टैक्टिकल मूव हो सकता है पर आप इस बदलाव को अच्छा मान लें तो ऐतराज नहीं....
जो ६५ साल के युवा इंडिया में यकीन करते .. और मानते कि इसका पांच हजार साल के भारत से डिस्कनेक्ट है... उनमें ये बदलाव दिख रहा है... पेंच हिन्दू शब्द के सोर्स में छिपा है... हिन्दू शब्द मुसलिम संस्कृति के मूल पश्चिमी गढ़ से आया है... और वहां इसे कलेक्टिव नाउन के रूप में ही लिया जाता रहा है...भारतीय शब्द को रियायत देने वाले हिन्दुस्तान या हिन्दू के पक्ष में नहीं जाना चाहते...पर यहां भी दिक्कत है उन्हें... असल में हिन्दुस्तान और हिन्दू शब्द के इस्तेमाल का रिवाज मुसलमानों में ही अधिक है... क्या इंडिया के पैरोकारों के चाहने से इंडिया के मुसलमान हिन्दुस्तान और हिन्दू शब्द का इस्तेमाल छोड़ देंगे?
ये हैरानी की बात है कि मोहन भागवत के इस प्रसंग के मकसद पर विमर्श बड़ा ही ढ़ीला-ढाला है... वे जोर लगा कर इसी नतीजे पर पहुंचते हैं कि ये सेफ्रोनाइजेशन का आग्रह है... दरअसल आरएसएस की नजर उस ऐतिहासिक बहाव को रास्ता देना लगता है जिसके कारण विदेश से आने वाले हर आक्रांता इस देश की संस्कृति में रच-बस जाया करते थे... मुसलमान का एसिमिलेशन अधूरा और छिटपुट ही रह गया...आरएसएस इसी अधूरेपन को पूर्णता देना चाहता है... वो भी महज एक शब्द- हिन्दू- के जरिए... वो मुसलमानों की धार्मिक पहचान को नहीं छेड़ने की बात भी करता है ...
ये विकलता है... कि मुसलमान बस हिन्दू शब्द से विशेषित हो जाएं ...यानि कि जो हिन्दू शब्द जीवन शैली है ... उसे अपना कह दें... अपनी विशिष्ट धार्मिक पहचान बनाए रखते हुए... आरएसएस वाले कह सकते हैं कि ये आसान.. पर व्यापक रास्ता है इस देश को आगे ले जाने का .. वो मानता रहा है कि मुगलों और राजपूतों के बीच शादी-ब्याह के रिश्ते एकांगी रहे जिस कारण एसिमिलेशन का काम पूरा नहीं हो पाया...
राजपूत की बेटी और मुगल के बेटे का रिश्ता होता रहा... मुगल की बेटी और राजपूतों के बेटे के बीच रिश्ते नहीं हुए... ये टू-वे ट्रैफिक की तरह होते तो दारा शिकोह वाले दूसरे मौके की जरूरत नहीं पड़ती... दारा शिकोह सत्ता संघर्ष में खुद कमजोर पड़ गए लिहाजा एसिमिलेशन का दूसरा मौका भी हाथ से निकल गया ... कई मुसलमान समय समय पर इस बात को स्वीकार करते रहे हैं कि जब इस देश की हवा, मिट्टी, जंगल और पानी पर उनका हक है तो फिर ताज के साथ वेद, पुराण, खजुराहो भी उनकी विरासत क्यों नहीं हो सकती है?...
एसिमिलेशन का अनजाने में एक रास्ता कांग्रेस का भी है... आरक्षण के जरिए मुसलमान आखिरकार समय के साथ जाति के खांचे में फिट हो जाएंगे... इसका असर गहरा होगा...पर कांग्रेस इसे सचेत कदम के रूप में नहीं ले पाएगी... इसके लिए उसे अपने नजरिए में व्यापक बदलाव जो करना पड़ेगा... फिलहाल मुसलमानों के आरक्षण के सहारे कांग्रेस की रूचि सत्ता पाने की आकुलता तक सिमटी हुई है...
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