पिछड़ों के हाथ में रहेगी कुंजी...
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संजय मिश्र
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खबर ये नहीं है कि नीतीश की पुकार को सुनकर लालू प्रसाद गले मिल गए... खबर ये है कि ११ अगस्त को जहां वे मिले वहां लोगों का जुटान नहीं हुआ... खबरनवीसों के लिए हाजीपुर उपचुनाव के सभामंच की वो तस्वीरें भले ऐतिहासिक फोटो की तरह सहेज कर रखने वाली चीज बन गई हों... पर बिहार की राजनीति में इस गठबंधन की राह उस सभामंच के नीचे की तस्वीरें तय करेंगी... ये तस्वीरें आने वाली अड़चनों के संकेत कर रही थीं... लालू की अभी भी इतनी हैसियत है कि वो बिहार के किसी कोने में सभा करने जाएं तो बीस-पच्चीस हजार लोग पहुंच ही जाते... नीतीश भी दस-पंद्रह हजार लोग कहीं भी जुटा लेते हैं... कायदे से हाजीपुर के उस भरत-मिलान की सभा में चालीस से पचास हजार लोग होने चाहिए थे... पर महज तीन-चार हजार की मौजूदगी चीख-चीख कर कह रही कि नेताओं के गले तो मिल गए पर उनके समर्थकों के दिल नहीं... मान लें कि लालू प्रसाद के समर्थक यहां से जेडीयू के कोटे के उम्मीदवार राजेन्द्र राय के कारण रणनीति के तौर पर कन्नी काट गए हों... तो भी मौजूद लोगों की तादाद पन्द्रह हजार होनी चाहिए थी... मतलब ये कि जेडीयू समर्थकों में इस महागठबंधन के लिए प्यार नहीं उमड़ा है... नीतीश की इस दयनीय शो का तेज दिमाग वाले लालू बेजा इस्तेमाल भी कर सकते... खबर ये भी है कि गठबंधन की राह आगे ठीक-ठाक चल पड़ी तो दो वोटर तबकों का धर्मसंकट समाप्त हुो जाएगा... जो मुसलमान २०१४ लोकसभा चुनाव के समय व्याकुल थे और अर्धचेतन मन से किसनगंज और कोसी इलाके में पोलराइज हो गए ... अब उन्हें विकल्पों के चक्कर में नहीं पड़ना पड़ेगा और वे थोक भाव से इस गठबंधन को राहत दे देंगे... इसी तरह उन सवर्णों वोटरों का धर्मसंकट भी दूर हो गया जो नीतीश की छवि के कारण लोकसभा चुनाव में तो नही पर २०१५ के विधानसभा चुनाव में नीतीश के लिए दिल में जगह रखे रहना चाहते थे... असल चुनावी जंग अब पिछड़ों के बीच छिड़ेगी... जो इनका ज्यादा हिस्सा अपने साथ ले जाएगा वो निर्णायक स्थिति में होगा...
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संजय मिश्र
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खबर ये नहीं है कि नीतीश की पुकार को सुनकर लालू प्रसाद गले मिल गए... खबर ये है कि ११ अगस्त को जहां वे मिले वहां लोगों का जुटान नहीं हुआ... खबरनवीसों के लिए हाजीपुर उपचुनाव के सभामंच की वो तस्वीरें भले ऐतिहासिक फोटो की तरह सहेज कर रखने वाली चीज बन गई हों... पर बिहार की राजनीति में इस गठबंधन की राह उस सभामंच के नीचे की तस्वीरें तय करेंगी... ये तस्वीरें आने वाली अड़चनों के संकेत कर रही थीं... लालू की अभी भी इतनी हैसियत है कि वो बिहार के किसी कोने में सभा करने जाएं तो बीस-पच्चीस हजार लोग पहुंच ही जाते... नीतीश भी दस-पंद्रह हजार लोग कहीं भी जुटा लेते हैं... कायदे से हाजीपुर के उस भरत-मिलान की सभा में चालीस से पचास हजार लोग होने चाहिए थे... पर महज तीन-चार हजार की मौजूदगी चीख-चीख कर कह रही कि नेताओं के गले तो मिल गए पर उनके समर्थकों के दिल नहीं... मान लें कि लालू प्रसाद के समर्थक यहां से जेडीयू के कोटे के उम्मीदवार राजेन्द्र राय के कारण रणनीति के तौर पर कन्नी काट गए हों... तो भी मौजूद लोगों की तादाद पन्द्रह हजार होनी चाहिए थी... मतलब ये कि जेडीयू समर्थकों में इस महागठबंधन के लिए प्यार नहीं उमड़ा है... नीतीश की इस दयनीय शो का तेज दिमाग वाले लालू बेजा इस्तेमाल भी कर सकते... खबर ये भी है कि गठबंधन की राह आगे ठीक-ठाक चल पड़ी तो दो वोटर तबकों का धर्मसंकट समाप्त हुो जाएगा... जो मुसलमान २०१४ लोकसभा चुनाव के समय व्याकुल थे और अर्धचेतन मन से किसनगंज और कोसी इलाके में पोलराइज हो गए ... अब उन्हें विकल्पों के चक्कर में नहीं पड़ना पड़ेगा और वे थोक भाव से इस गठबंधन को राहत दे देंगे... इसी तरह उन सवर्णों वोटरों का धर्मसंकट भी दूर हो गया जो नीतीश की छवि के कारण लोकसभा चुनाव में तो नही पर २०१५ के विधानसभा चुनाव में नीतीश के लिए दिल में जगह रखे रहना चाहते थे... असल चुनावी जंग अब पिछड़ों के बीच छिड़ेगी... जो इनका ज्यादा हिस्सा अपने साथ ले जाएगा वो निर्णायक स्थिति में होगा...
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