शह और मात के बीच चुनावी समर
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संजय मिश्र
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बड़े ही रोचक दौर में आ गया है चुनावी समर.... एक तरफ बयान और आरोप नीचता की पराकाष्ठा की तरफ सरक रहे हैं तो दूसरी ओर राजनीतिक शुचिता और नैतिकता पर भी विमर्श हो रहा है... पहली श्रेणी की तल्ख सच्चाई है कि ये इस देश के लोगों को उस हद तक शर्मशार करेगी कि उन्हें कान बंद करने पड़ेंगे.... माधुरी प्रकरण पर जिस तेजी से कांग्रेस आगे बढ़ रही है... वो खतरनाक ही नहीं है बल्कि किसी दिन यूपी से लेकर स्पेन तक के पट खुलने की क्षमता रखते... ... दोनों प्रमुख दलों के अलावे क्षेत्रीय दलों ने मुंह खोला तो फिर पेंडोरा बॉक्स खुल जाएगा... बिहार के लोग नीतीश के संबंध में राबड़ी के बयानों को याद करवाएंगे तो कर्पूरी ठाकुर के संजय गांधी बोटेनिकल गार्डेन तक की यात्रा आपको करनी पड़ सकती है... ऐसा अन्य राज्यों में भी हो सकता है... आप पर नेताओं को रहम न आया तो बात बढ़ते-बढ़ते नेहरू से गांधी तक पहुंच जा सकता है... ये अत्यधिक खतरनाक खेल होगा... न जाने कांग्रेस को ऐसी सलाह कौन दे रहा है?...
दूसरी तरफ का नजारा थोड़ी उम्मीद जगाता है... अन्ना की चिट्ठी प्रकरण से लोगों को गांधी और नेहरू के बीच के रिश्ते जैसी महक आ रही होगी... ... गांधी ने कहा था कि कांग्रेस राजनीति छोड़े और गांवों में जाकर काम करे... अन्ना और केजरीवाल के बीच का मतभेद उसी तरह का है....बेशक जिस तरह कांग्रेस और समाजवादी दलों के नेताओं को गांधी और जेपी के आंदोलन को याद करने का अधिकार है उसी तरह आप पार्टी के नेताओं को अन्ना के आंदोलन की विरासत को याद करने का अधिकार है..... लेकिन इसकी आशंका भी हो सकती है कि कांग्रेस और समाजवादी दलों ने जिस तरह उन आंदोलनों की आत्मा से खिलवाड़ किया उसी तरह आप पार्टी भी अन्ना आंदोलन की विरासत से बाद में भटक जाए...
इन दोनों परिदृष्य के बीच चिंताजनक पहलू ये है कि २०१४ के चुनाव में अभी लंबा वक्त है और उम्मीद के पहलू कहीं कीटड़ उछाल राजनीति में दब न जाएं... वोटर के लिए बड़ी चुनौती है सामने ...
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संजय मिश्र
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बड़े ही रोचक दौर में आ गया है चुनावी समर.... एक तरफ बयान और आरोप नीचता की पराकाष्ठा की तरफ सरक रहे हैं तो दूसरी ओर राजनीतिक शुचिता और नैतिकता पर भी विमर्श हो रहा है... पहली श्रेणी की तल्ख सच्चाई है कि ये इस देश के लोगों को उस हद तक शर्मशार करेगी कि उन्हें कान बंद करने पड़ेंगे.... माधुरी प्रकरण पर जिस तेजी से कांग्रेस आगे बढ़ रही है... वो खतरनाक ही नहीं है बल्कि किसी दिन यूपी से लेकर स्पेन तक के पट खुलने की क्षमता रखते... ... दोनों प्रमुख दलों के अलावे क्षेत्रीय दलों ने मुंह खोला तो फिर पेंडोरा बॉक्स खुल जाएगा... बिहार के लोग नीतीश के संबंध में राबड़ी के बयानों को याद करवाएंगे तो कर्पूरी ठाकुर के संजय गांधी बोटेनिकल गार्डेन तक की यात्रा आपको करनी पड़ सकती है... ऐसा अन्य राज्यों में भी हो सकता है... आप पर नेताओं को रहम न आया तो बात बढ़ते-बढ़ते नेहरू से गांधी तक पहुंच जा सकता है... ये अत्यधिक खतरनाक खेल होगा... न जाने कांग्रेस को ऐसी सलाह कौन दे रहा है?...
दूसरी तरफ का नजारा थोड़ी उम्मीद जगाता है... अन्ना की चिट्ठी प्रकरण से लोगों को गांधी और नेहरू के बीच के रिश्ते जैसी महक आ रही होगी... ... गांधी ने कहा था कि कांग्रेस राजनीति छोड़े और गांवों में जाकर काम करे... अन्ना और केजरीवाल के बीच का मतभेद उसी तरह का है....बेशक जिस तरह कांग्रेस और समाजवादी दलों के नेताओं को गांधी और जेपी के आंदोलन को याद करने का अधिकार है उसी तरह आप पार्टी के नेताओं को अन्ना के आंदोलन की विरासत को याद करने का अधिकार है..... लेकिन इसकी आशंका भी हो सकती है कि कांग्रेस और समाजवादी दलों ने जिस तरह उन आंदोलनों की आत्मा से खिलवाड़ किया उसी तरह आप पार्टी भी अन्ना आंदोलन की विरासत से बाद में भटक जाए...
इन दोनों परिदृष्य के बीच चिंताजनक पहलू ये है कि २०१४ के चुनाव में अभी लंबा वक्त है और उम्मीद के पहलू कहीं कीटड़ उछाल राजनीति में दब न जाएं... वोटर के लिए बड़ी चुनौती है सामने ...
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