आत्महत्या करने वाले किसानों के लिए देश छोड़ें
अनंतमूर्ति ...
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संजय मिश्र
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यू आर अनंतमूर्ति इस बात से आहत हैं कि नरेन्द्र
मोदी भारत के प्रधानमंत्री बन सकते हैं... इसलिए उन्होंने ऐलान कर दिया है कि मोदी
के प्रधानमंत्री बनने के बाद वे इस देश में नहीं रहना चाहेंगे... उनका कहना है कि
तब देश में भय का माहौल पसर जाएगा... अब... वो ज्योतिषी तो हैं नहीं कि बता दें कि
मोदी राज के इंडिया में क्या सब होगा लिहाजा मान कर चला जाए कि अपने अनुभव के आधार
पर और मोदी की कार्यशैली को देखकर लोगों को चेता रहे हैं।
बेशक बतौर साहित्यकार उन्हें ये अख्तियार है और
बेलौस अंदाज में उन्होंने अपना रूख स्पष्ट किया है। वे किस देश में रहना पसंद
करेंगे इसमें लोगों की रूचि नहीं होनी चाहिए... मकबूल फिदा हुसैन की तरह दुबई जाएं
या फिर अमर्त्य सेन की तरह एक पैर इंडिया में और दूसरा पैर विदेशों में रखें। उनके
ऐसे किसी फैसले की उन्हें आजादी है। उनके बयान पर अधिकांश लोग चकित हैं। बीजेपी
वाले इसलिए कि दस साल से मोदी जिस हेट केंपेन से घिरे हैं उससे भी मारक है
अनंतमूर्ति के उद्गार। कांग्रेस खुश है कि मोदी को अपमानित करने और बौखलाहट पैदा
करने वाला इस तरह का अचूक निशाना उसके बदले किसी और ने ही साध दिया। लगे हाथ अपनी
सफाई में अनंतमूर्ति ने राहुल की प्रशंसा भी कर दी।
बहुत से लोगों को इस बात का रोष है कि अनंतमूर्ति
ने देश का अपमान किया है। ऐसा सोचनेवालों में गैर-मोदी दायरे के लोग अधिक हैं। ये
तबका प्रगतिशील है साथ ही वाम और कांग्रेस ब्रांड सेक्यूलर राजनीति का
प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष पैरोकार भी। ऐसे लोग कह रहे हैं कि अनंतमूर्ति को मोदी के
खिलाफ मुहिम छेड़नी चाहिए न कि देश के खिलाफ। यकीनन कन्नड साहित्यकार पर मुहिम
चलाने का दबाव देना उनके मौलिक अधिकारों का हनन है। उनकी मर्जी है अपने अंदाज में
जीएं। पर सवाल उठने लाजिमी हैं।
मुश्किल ये है कि अपने बयान से उन्होंने ये मान
लिया है कि मोदी और इंडिया एक हो जाएंगे। उसी तर्ज पर जैसे देवकांत बरूआ ने कहा था
कि इंदिरा इज इंडिया और इंडिया इज इंदिरा। यानि लोग पूछ सकते हैं कि क्या इंदिरा
के उस उत्कर्ष काल में वे इस देश को छोड़ किसी दूसरे मुल्क में चले गए? ये सवाल भी
पूछा जाना चाहिए कि इमरजेंसी को जब इसी देश के लोग झेल और उखाड़ फेक सकते तो मोदी
के किसी तानाशाही शासन को क्यों नहीं? पर अनंतमूर्ति का कथन ये मान कर चलता है कि
इस देश के लोगों में वो कूवत नहीं रह जाएगी। माने ये कि लोगों की क्षमता पर वो
संदेह कर रहे हैं।
देश छोड़ने की धमकी देकर वो शर्त रखना चाहते कि
उन्हें रखना है तो मोदी को वोट न दें। क्या ये बैद्धिक तानाशाही फरमान की श्रेणी
में नहीं आता? उत्तर भारत के लोग उन्हें नहीं के बराबर जानते थे.... अब वे
सुर्खियों में आ गए हैं। लिहाजा विभिन्न मसलों पर उनका नजरिया इस देश के लोग जानना
चाहेंगे। मसलन मुजफ्फरनगर दंगों पर उनका नजरिया क्या है? जब इस देश में कोई आफत
आती है तो राहुल और सोनिया से पहले किसी भी राजनीतिक व्यक्ति को प्रभावित स्थल पर
नहीं जाने दिया जाता है। यानि इन दोनों के लिए अलग नियम और अन्य लोगों के लिए अलग।
ये पहले उत्तराखंड और अब मुजफ्फरनगर त्रासदी में देखी गई। क्या इस संविधानिक देश
में अपनाए जा रहे दो तरह के नियम पर अनंतमूर्ति कुछ बोलेंगे।
वे कहते कि इंदिरा का विरोध किया फिर भी उन्हें
नहीं धमकाया गया..... क्या उन्हें इल्म है कि इमरजेंसी के दौरान कितने साहित्यकारों
और लेखकों को जेल की हवा खिलाई गई... तो क्या वे देश छोड़ कर चले गए? क्या उन्हें
याद है कि जेपी पर डंडे चले थे उस दौर में? अनंतमूर्ति को दुख है कि इस विस्फोटक
वचन के बाद मोदी समर्थक सोशल साइट्स पर उनकी भयावह खातिर कर रहे हैं। पर क्या
उन्हें उस वक्त ऐतराज होता है जब हिन्दू धर्म के भगवानों पर उन्हीं साइट्स पर न
सुनने लायक गालियां पढ़ी जाती हैं? बेशक दक्षिणपंथी भी उसी अंदाज में जनवादियों,
प्रगतिशीलों और उन्मादी सेक्यूलर राजनीति के चैंपियनों को गरियाते हैं। इन मंचों
पर फ्री फार आल है जो चिंताजनक है।
बंगलोर में एक साहित्यिक समारोह में प्रकट किए
अपने विचारों से अनंतमूर्ति ने पलटी मारी है। अब वे कहते हैं कि वो उस जहां में
नहीं रहेंगे जहां मोदी होंगे। बावजूद इसके उनके विचार इनटालरेंट किस्म के हैं...
यानि साधारण भाषा में कहा जाए तो ये फासीवादी सोच है। यहां संवाद की गुंजाइश नहीं
है उल्टे व्यक्ति विशेष के लिए नफरत का पैगाम है। ये तब और अर्थपूर्ण हो जाता है
जब वे कहते हैं कि आरएसएस का दर्शन हिन्दू दर्शन नहीं है। वे ऐसा मानते हैं तो फिर
उन्होंने हिन्दू दर्शन और बीजेपी के हिन्दुत्व में भेद बताने के लिए लोगों से संवाद
क्यों नहीं किया है? हजारो मुद्दे हैं जिनपर मोदी और बीजेपी की खिलाफत की जा सकती
है।
अनंतमूर्ति ब्राम्हण परिवार से आते हैं... संभव
है उन्होंने संस्कृत भी घोंट कर पिया हो... जहां उन्हें बताया गया हो कि इस देश
में भारत माता की जगह पृथ्वी माता की अहमियत है। लिहाजा इस समझ के बूते वे पृथ्वी
के किसी कोने को अपना बना लें। पर पृथ्वी माता का संदेश बीजेपी को जरूर बता के
जाएं। अपने वचन में वे विद्वानों वाली ठसक और धाक का अहसास कराना चाहते हैं पर
आजाद इंडिया में उद्दात विद्वानों के सूखे पर चिंता नहीं जताते। उन्हें तब शर्म
नहीं आती जब इस देश के तथाकथित बुद्धिजीवी नोअम चोम्सकी के भारत आने पर उन्हें
सुनने के लिए भेड़ियाधसान करने लगते। क्या अनंतमूर्ति के मौजूदा देश में ऐसा कोई
मार्गदर्शन देने वाला विद्वान है जिसे सुनने चोम्सकी भारत पधारें?
भ्रष्टाचार को जायज ठहराने वाले स्वनामधन्य
विद्वानों पर उन्हें कुछ कहना है? क्या कोई ऐसा विद्वान है देश में जो अपनी आभा की
बदौलत मुजफ्फरनगर जाकर शांति स्थापित करने की हैसियत रखता हो... उसी मुजफ्फरनगर में जहां सेक्यूलर राजनीति के
उन्माद का प्रदर्शन और कम्यूनल राजनीति के फसल काटने का खुला खेल चल रहा हो? क्या
उन्हें मोदी राज में लोकतंत्र के बिलट जाने का डर सता रहा है? ऐसे विश्लेषक भरे
परे हैं इस देश में जो हर चुनाव के बाद लोकतंत्र की रक्षा हो जाने की बात करते।
मानो उन्हें लोकतंत्र की गहरी पैठ पर शक हो। ऐसे शक जाहिर होने पर अनंतमूर्ति को
गुस्सा क्यों नहीं आता?
ऐसे माहौल में जब संविधानिक इंडिया की
उपलब्धियों पर ६५ साल का कुरूप और श्रीहीन सच उघार होकर हावी है ... लेखकों को
क्या करना चाहिए? लेखकों का छोटा सा तबका है जो आमजनों को इमानदारी से सचेत करने
में लगा है। उससे बड़ा तबका है जो आपाधापी में है... जो समझता है कि मोदी की
खिलाफत से इतिहास में नाम दर्ज होने का चांस मिलेगा। और इन सबसे बड़ा तबका है जो सबक
सिखाने में माहिर कांग्रेस की अगुवाई में मोदी के खिलाफ जंग के मैदान में फौजी
दस्ते की तरह कूद चुका है। अनंतमूर्ति क्या करें? विदर्भ में किसानों की आत्महत्या
करने के दर्द को महसूस कर सकते हैं। वो चाहें तो इस टीस से आहत होकर इंडिया छोड़ने
का फैसला करें। देश छोड़ने के लिए मोदी के आने का इंतजार क्यों?
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