नशा
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भटक गया बचपन गलियों में
मैं भी ढूंढू ....तू भी ढूंढ
काँटा गड़ा कहाँ कलियों में,
मैं भी ढूंढू ....तू भी ढूंढ
आशाएं जो थे भविष्य के
भावी नायक अखल विश्व के
कुलिस कठोर करों ने किस के
जला नीड़ के डाले तिनके
सोन चिरैया बिलख रही किस मरघट के तरुवर की ठूंठ
मैं भी ढूंढू ....तू भी ढूंढ
चन्द्र खिलौने लेने के दिन
गुजरे ठिकरे कचड़े बिन बिन
मन में दबी आग लेने को
इक दिन सारे बदले गिन गिन
किस एकाकी क्षण में उसने पी ली करुआहट की घूँट
मैं भी ढूंढू ....तू भी ढूंढ
झंझावातों के अंदेशे
सहज सजगता के संदेशे
हो चिंतन कि इसके पहले
अलग विलग हो रेशे रेशे
समय शेष है सद प्रयास से लें बिखरी कलियों को गूंथ
मैं भी ढूंढू ....तू भी ढूंढ
किलकारी बनकर चिनगारी
जला रही है क्यारी क्यारी
किसलय कोंपल झुलस रहे हैं
अब पूरी बगिया की बारी
व्यथा जनक इन परिदृश्यों से किसने ली है आँखें मूँद
मैं भी ढूंढू ....तू भी ढूंढ।
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भटक गया बचपन गलियों में
मैं भी ढूंढू ....तू भी ढूंढ
काँटा गड़ा कहाँ कलियों में,
मैं भी ढूंढू ....तू भी ढूंढ
आशाएं जो थे भविष्य के
भावी नायक अखल विश्व के
कुलिस कठोर करों ने किस के
जला नीड़ के डाले तिनके
सोन चिरैया बिलख रही किस मरघट के तरुवर की ठूंठ
मैं भी ढूंढू ....तू भी ढूंढ
चन्द्र खिलौने लेने के दिन
गुजरे ठिकरे कचड़े बिन बिन
मन में दबी आग लेने को
इक दिन सारे बदले गिन गिन
किस एकाकी क्षण में उसने पी ली करुआहट की घूँट
मैं भी ढूंढू ....तू भी ढूंढ
झंझावातों के अंदेशे
सहज सजगता के संदेशे
हो चिंतन कि इसके पहले
अलग विलग हो रेशे रेशे
समय शेष है सद प्रयास से लें बिखरी कलियों को गूंथ
मैं भी ढूंढू ....तू भी ढूंढ
किलकारी बनकर चिनगारी
जला रही है क्यारी क्यारी
किसलय कोंपल झुलस रहे हैं
अब पूरी बगिया की बारी
व्यथा जनक इन परिदृश्यों से किसने ली है आँखें मूँद
मैं भी ढूंढू ....तू भी ढूंढ।
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यहाँ - मैं - से मतलब है प्रशासन और - तू - से मतलब है बच्चों के अभिभावक .... ये पंक्तियाँ बिहार के आई पी एस ऑफिसर अनिल कुमार के लिखे हैं। ये कविता स्कूली बच्चों में नशे की लत के खिलाफ अभियान को धारदार बनाने के मकसद से लिखी गई। कुछ ही दिनों में अनिल कुमार की छप कर आने वाली कविता संग्रह में शामिल होगी ये कविता। सामाजिक समस्याओं पर अंकुश के लिए एक अधिकारी की ऐसी विकलता उत्साह बढाती है।
---संजय मिश्र
---संजय मिश्र
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