मोदी से बेचैन क्यों
है कांग्रेस?
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संजय मिश्र
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आंध्र-प्रदेश जल रहा
है और इसकी आंच दिल्ली तक आ गई है। इससे बेफिक्र कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सत्यव्रत
चतुर्वेदी राग अलाप रहे हैं कि नरेन्द्र मोदी के पीएम उम्मीदवार बनने से सेक्यूलर
वोट के पक्ष में ध्रुवीकरण होगा न कि इसके विरोध में। मुजफ्फरनगर के हृदयविदारक
दंगों के बाद का कांग्रेसी मंशे का ये गंभीर इजहार है। ये सत्तारूढ़ दल के जेहन को
उघारता है। ये उस समय के बयानों की कंटिनियुटी है जब नरेन्द्र मोदी को बीजेपी की
तरफ से सेंटरस्टेज पर लाने की खबरें छन कर निकली थी। तब दिग्विजय सिंह, कपिल
सिब्बल सरीखे कांग्रेसी नेता जश्न की मुद्रा में कहते फिर रहे थे कि कांग्रेस की
२०१४ की आधी चुनावी फतह इसी से हो जाएगी। देशवासी हैरान हुए थे।
सतह पर आई उस खबर से
बीजेपी में जो तल्खी बेपर्द हुई वो अब जाकर थमी है। पार्टी को - समय आने पर सब साफ
होगा - जैसे जुमलों का सहारा लेना पड़ा था तब। मोदी आज बीजेपी के विधिवत पीएम
उम्मीदवार के तौर पर सभाएं कर रहे हैं। कांग्रेस ने अपने उम्मीदवार की घोषणा टाल
दी है। जश्न की उसकी मुद्रा खो सी गई है। मोदी के एक बयान पर औसतन आधे दर्जन
कांग्रेसी नेता मैदान में कूद पड़ते हैं। वे भाषाई मर्यादा भूलने लगे हैं। कभी
उज्जड शैली में मोदी पर भड़ास निकाल लेते तो कभी आडवाणी से दरियादिली दिखा बैठते।
मुसलमान वोटों की आस पूरी होने की कल्पना के बावजूद बेचैनी किस बात की है?
गाहे-वगाहे बीजेपी को शिष्ट राजनीति की नसीहत क्यों दी जा रही है?
लंदन की वेस्ट-मिंस्टर
शैली की राजनीति के चाहने वाले इंडिया में धकियाए हुए हैं... यहां रोबस्ट और राजा-महराजा
के दरबार की मानिंद साम, दाम, दंड, भेद वाली रीति-नीति का ही जोर है... ये खुरदरा
है... और नफासत वाली संसदीय परिपाटी के पैरोकारों को चिढ़ाने के लिए काफी है...
सुविधा के हिसाब से कांग्रेस इस सुसंस्कृत डिबेटिंग परिपाटी की बीजेपी को अक्सर
याद दिलाती रहती है। जब चिदंबरम बीजेपी के जसवंत सिंह को पत्रकारों के सामने
जेंटलमैन पॉलिटिसियन कह कर पुकारते हैं तो वहां एक मकसद होता है। भले जसवंत इस
कांग्रेसी उद्गार से फूले नहीं समाते हों।
लाल कृष्ण आडवाणी,
सुषमा स्वराज, अरूण जेटली, यशवंत सिन्हा जैसे सांसद जब सदन में उसी वेस्टमिंस्टर
शैली में कांग्रेस की बखिया उघेरते हैं तो सोनिया के एक इशारे पर कांग्रेसी
विशुद्ध भारतीय शैली में उधम मचाने को आमादा हो जाते। तो फिर बीजेपी में आडवाणी को
हाशिए पर धकेले जाने और इस बुजुर्ग नेता के बीजेपी अध्यक्ष को लिखे पत्रों पर आंसू
बहाने वाले कांग्रेसी नेताओं का इरादा सवाल खड़े करता है। ये महज मजा लेने के लिए
नहीं होता। और न ही ऐसे मौकों पर मीडिया की दिलचस्पी सिर्फ चिकोटी काटने तक सीमित
रहती है।
दरअसल कांग्रेस
राजनीतिक दाव-पेंच में इतनी माहिर है कि बीजेपी के इन शालीन कहे जाने वाले सितारों
का मनमर्जी सहयोग ले लेती है। और फिर कुछ ही समय में ऐसे पछाड़ती है कि बीजेपी को
कड़वा घूंट पीने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता है। ये सदन का जाना पहचाना नजारा
होता है। बीजेपी भी मानती है कि उससे भद्रलोक राजनीति की कांग्रेसी अपेक्षा एक चाल
होती है। और इसी चाल से संदेश पाकर देश के सार्वजनिक जीवन में फैले कांग्रेस के
मोहरे मोर्चा संभाल लेते हैं। बीजेपी के लिए ये जाल में फसने जैसा होता है। अब
जबकि बीजेपी ने आक्रामक तेवर वाले नरेन्द्र मोदी को मैदान में उतारा है तो
कांग्रेस की सांस फूली हुई है।
कांग्रेस उन नेताओं
से खार खाती है जो अक्खर और रूखड़े छवि वाले होते हैं। नरेन्द्र मोदी ऐसे ही
राजनेता हैं। बड़बोले लालू प्रसाद भी इसी तरह के नेता रहे हैं। याद करिए लालू युग
को जब बिहार में कांग्रेस की हैसियत आरजेडी की पिछलग्गू की तरह थी। लालू तय करते
थे कि कांग्रेस की तरफ से चुनाव में किसको टिकट मिलेगा। लालू के रूतबे का असर तो
सीपीआई पर भी था। आरजेडी सुप्रीमो के कहने पर ही लोकसभा चुनाव में भोगेन्द्र झा की
टिकट कटी और चतुरानंद मिश्र उम्मीदवार बनाए गए... साथ ही लालू के सहयोग से जिताए
भी गए।
नरेन्द्र मोदी की
खासियत है कि वो कांग्रेस को चौंकाते हैं... छकाते भी हैं... और बार-बार ऐसा करते
हैं। ये अदा आडवाणी-सुषमा ब्रांड राजनीति से अलग होती है। कांग्रेस की रणनीति धरी
की धरी रह जाती है। वे अनुमान नहीं लगा पाते कि मोदी की अगली चाल क्या होगी?
पारंपरिक राजनीति के हिसाब से रणनीति बनाने वाली कांग्रेस को सपने में भी अहसास
नहीं था कि मोदी की सभा में उनके समर्थक टिकट खरीदकर आएंगे। कांग्रेस का
बुद्धिजीवी और मेनस्ट्रीम मीडिया वाला मोर्चा फासीवाद की परिभाषा के हिसाब से मोदी
के भाषण के शब्दों की पोस्टमार्टम करता रह जाता है।
पर कांग्रेस को अपनी
उस लोच पर यकीन है जिससे वो पिछलग्गू भी बन जाती और मौका आने पर विरोधी को पैरों
में भी झुकाती है। लालू, मुलायम और मायावती इसके क्लासिक उदाहरण हैं। इससे
कांग्रेस को सहयोगी मिल जाएंगे। कांग्रेस इस ताक में भी है कि बीजेपी के उमंग में
खूब इजाफा हो ताकि वो गलतियां करे। उसकी उम्मीद मोदी के पिछड़ा कार्ड पर भी टिकी
है जो रिजनल क्षत्रपों को कमजोर बना सकता है। कांग्रेस को अहसास है कि मोदी फैक्टर
स्थापित समीकरणों को बेपहचान बना रहा है। फिलहाल नरेन्द्र मोदी के चलते चुनावी
फिजा अभी से रोमांचक हो गई है।
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