मिथिला चित्रकला पार्ट- 6
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संजय मिश्र
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संजय मिश्र
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मोर माने प्रणयलीला, उर्वरता दिखाते बांस और कमल माने योनि... यानि सृजन के समवेत
गान को आकार देने का अनुराग दर्शाते प्रतीक ... . मानो ईश्वर की उस अभिलाषा के निर्वाह
का आभास कराते ...जो सृष्टि, पालन और संहार की लीला में निहित है ...ऐसा आस्थावान लोग
कहेंगे। ब्रम्हयोनि से जुड़े प्रतीक पीपल के पत्ते पर सृजन का सोपान गढ़ने वाले गंगा
झा भी कुछ ऐसा ही कह रहे होते हैं जब उनकी कूची जीवन के उहापोहों को मिथिला चित्र शैली
में उकेरती रहती। मिथिला स्कूल ऑफ पेंटिंग के इस आयाम से अधिकांश लोग अनजान हैं।
दरभंगा के एक निजी स्कूल में शिक्षक गंगा झा के लिए ये महज संयोग हुआ कि वे पीपल
के पत्ते पर पेंटिंग करने लगे। वे बताते हैं कि पीपल के पत्ते पर बनी पूर्व रूसी राष्ट्रपति
गोर्वाचोव की पोर्ट्रेट किसी मैगजीन में देखने के बाद उन्हें ये खयाल आया। लेकिन मुश्किल
सामने खड़ी थी। आखिर पत्ते को रेशे सहित कहां से लाया जाए। हरे पत्ते को पानी में कई
दिनों तक रखने के बाद और फिर पानी में सोडा डाल कर उसमें भिगोए रखने के बाद उन्हें
सफलता मिली।
साफ और रेशेदार पत्ते पर उन्होंने पेंटिंग की तो दूसरी समस्या आ गई। रेशों के बीच
के छिद्र से रंग का दूसरी तरफ निकल जाना। गंगा झा का कहना है कि तीन तीन बार कलर करते
रहने पर मनमाफिक नतीजा सामने आता है। लिहाजा करीब सौ घंटे एक चित्र बनाने में लग जाते
हैं। अन्य कलाकारों की तरह वे भी बाजारू रंग का ही इस्तेमाल करते हैं। इस कलाकार ने
शुरूआत नेताओं के चित्र बना कर की। बाद में इसका दायरा बढ़ाया। खजुराहो और एमएफ हुसैन
के चित्र भी उन्होंने उकेरे।
मनोबल बढ़ा तो फिर मुड़ गए पत्ते पर मिथिला चित्रकला को नया आयाम देने की तरफ।
काले कागज पर चिपकाए गए पीपल के पत्ते पर जब चित्र बन जाता तब करीने से उसे सफेद कागज
पर माउंट करते हैं। पत्ते पर कचनी की गुजाईश नहीं रहती तो पत्ते के बाहर काले कागज
पर ही उसे पेंट किया जाता है। इसके अलावा वे कागज पर भी मिथिला चित्र बनाते हैं।
दरभंगा जिले के पड़री गांव के रहने वाले गंगा प्रसाद झा ने कला की आरंभिक शिक्षा
पटना आर्ट कॉलेज के पूर्व प्राचार्य राधा मोहन प्रसाद से ली। बाद में दरभंगा के ब्रम्हानंद
कला महाविद्यालय और कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय से कला की शिक्षा पाई। देश
के विभिन्न शहरों में इनके सोलो एक्जीबीसन लग चुके हैं। पूर्व राष्ट्रपति ए पी जे अब्दुल
कलाम इनकी पीपल कला के मुरीद हैं और इन्हें प्रशस्ति पत्र दे चुके हैं। वे उम्मीद जताते
हैं कि पीपल कला प्रसार जरूर पाएगी।
गंगा प्रसाद झा – चित्रकार
पीपल के पत्ते पर बनाए चित्र से मुझे ख्याति मिली... लेकिन कागज पर बनी मेरी मिथिला
पेंटिंग की खासियत है कि इनमें एनाटोमी का खयाल रखा गया है। यानि बैकग्राउंड को देखते
हुए पात्र और प्रतीकों की लंबाई और चौड़ाई सही अनुपात में रखी गई हैं। दरअसल मिथिला
चित्र शेली में एनाटॉमिक सेंस का अभाव रहा है।
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